खनिज और विटामिन से भरपूर होता है सेम
सेम भी एक उपयोगी दलहनी फसल है, जिसकी फली, बीज, जड़ें, फूल और पत्तियां खाने के काम में आती हैं। इसकी फलियों में प्रोटीन की मात्रा लगभग 2.4 ग्राम प्रति 100 ग्राम पाई जाती है। खनिज और विटामिन भी इसमें प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। सेम में एंटी आक्सीडेंट का गुण पाया जाता है।
सेम संसार के प्रायः सभी भागों में उगाई जाती है। इसकी अनेक जातियां होती हैं और उसी के अनुसार फलियां भिन्न-भिन्न आकार की लंबी, चिपटी और कुछ टेढ़ी तथा सफेद, हरी, पीली आदि रंगों की होती है। सेम मधुर, शीतल, भारी, बलकारी, वातकारक, दाहजनक, दीपन तथा पित्त और कफ का नाश करने वाली कही गई है।
इसके लिए उत्तम निकास वाली दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है। अधिक क्षारीय और अधिक अम्लीय भूमि इसकी खेती में बाधक होती है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें, इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर या हल चलाएं। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं। पूसा अर्ली प्रौलिफिक , पूसा सेम 3, पूसा सेम 2 ,कल्याणपुर टाइप 1,कल्याणपुर टाइप 2 सेम की फसल की अच्छी उपज लेने के लिए उसमें आर्गनिक खाद ,कम्पोस्ट खाद का पर्याप्त मात्रा में होना जरुरी है। इसके लिए एक हे. भूमि में 40-50 क्विंटल अच्छे तरीके से सड़ी हुई गोबर की खाद, 20 किलोग्राम नीम और 50 किलोग्राम अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण बनाकर खेत में बुवाई से पहले समान मात्रा में बिखेर लें और खेत की अच्छे तरीके जुताई कर खेत को तैयार करें इसके बाद बुवाई करें ।
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान की तरफ से इसकी खेती के लिए उन्नत प्रजातियों को विकसित किया गया है। आईआईएचआर सेलेक्शन-21, डब्ल्यूबीसी-2 और सेलेक्शन 71 प्रजाति की खेती करके अच्छी उपज ली जा सकती है।
वैज्ञानिक डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने बताया ’’पोषण, सुरक्षा और आय के लिए किसानों को दलहनी सब्जियों की खेती करनी चाहिए। इन सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं इसलिए बाजार में इनकी मांग भी अधिक है।’’ दलहनी सब्जियों में औषधीय गुण पाए जाते हैं और विभिन्न रोगों को खासकर डायबिटीज, प्रोस्टेट कैंसर और पर्किसन्स जैसी बीमारी से लड़ने की क्षमता भी इसमें अधिक होती है। (हि.स.)।