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चंडीगढ़ (ईएमएस)। आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (एएफटी) ने सेना के एक अधिकारी मेजर जसबीर सिंह को वॉर इंजरी पेंशन नहीं देने के लिए रक्षा मंत्रालय की खिंचाई करते हुए वेंशन जारी करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मंत्रालय पर 30,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया है। मेजर जसबीर सिंह सन 1966 में चीन सीमा पर बारूदी सुरंग हटाते समय घायल हो गए थे। इस हादसे में उनको अपना एक पैर और एक आंख गंवानी पड़ी थी। इस घटना के बाद 40 साल पहले उनको ड्यूटी से डिस्चार्ज कर दिया गया था।
एएफटी ने मंत्रालय पर 30,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया है, क्योंकि ऑफिसर को मुकदमे की अनावश्यक कार्रवाई से गुजरना पड़ा। आर्मी ऑफिसर का नाम मेजर जसबीर सिंह है जो भारतीय सेना के कॉर्प्स ऑफ इंजिनियर्स में सेवारत थे। अब करीब 70 साल के हो चुके जसबीर सिक्किम के एक ऑपरेशनल एरिया में 11 जुलाई, 1966 को घायल हो गए थे। उनको सेना पदक (वीरता) से पुरस्कृत किया गया था और उनकी इंजरी को ‘बैटल कैजुअल्टी’ घोषित किया गया था। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वह 12 सालों तक सेना को अपनी सेवा देते रहे। लेकिन हालत ज्यादा खराब होने पर 18 सितंबर, 1978 को उनको सेवामुक्त कर दिया गया।
सेना से सेवामुक्त होने के बाद ऑफिसर को वॉर इंजरी पेंशन देने से मना कर दिया गया लेकिन उनको रक्षा मंत्रालय के लेखा विभाग की ओर से अपंगता पेंशन दी जाती रही। पहली बार जब वह अपनी शिकायत लेकर सरकार के पास पहुंचे तो रक्षा मंत्रालय उनको जुलाई 2013 से इंजरी पेंशन देने के लिए तैयार हुआ। ऑफिसर चाहते थे कि उनको सितंबर 1978 से पेंशन दी जाए, तो वह सेवामुक्त हुए थे और उन्होंने एएफटी का दरवाजा खटखटाया।
एएफटी ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए सरकार की स्कीम है लेकिन हमें बहुत ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि सरकारी पॉलिसियों को क्रियान्वित करने की जिम्मेदार अथॉरिटी ने पात्र सैनिकों को इस तरह की पॉलिसियों-नियमों के तहत लाभ देने में समवेदना की पूरी तरह कमी दिखाई। एएफटी चंडीगढ़ के जूडिशियल मेंबर जस्टिस एम.एस. चौहान और ऐडमिनिस्ट्रेटिव मेंबर लेफ्टिनेंट जनरल मुनीष सिब्बल की एक डिविजनल बेंच ने रक्षा मंत्रालय को साल 1978 से 9 फीसदी ब्याज के साथ आफिसर को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है।