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37 दिन बाद ही कानपुर में फिर रेल हादसा, यात्रियों की सुरक्षा पर उठे सवाल !

नई दिल्ली, 28 दिसम्बर=  उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात इलाके में सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस के एक दर्जन से अधिक डिब्बे पटरी से उतरने के बाद रेलवे की सुरक्षा और संरक्षा के दावों की पोल फिर खुल गई है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि पिछले महीने की 20 तारीख को कानपुर के पास ही पुखरायां में एक भीषण रेल हादसा हुआ था जिसमें 150 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। उस दिन इंदौर-पटना इंटरसिटी ट्रेन के 14 डिब्बे पटना से उतर गए थे।

रूरा रेलवे स्टेशन के निकट हुए ताजा ट्रेन हादसे में जानमाल का ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, जिसे कुदरत का करिश्मा ही कहा जा सकता है। लेकिन इस रेल हादसे से एक बार फिर से यह सवाल उठ रहा है कि भारतीय रेल अपने मुसाफिरों की सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है।
हालाँकि देश में होने वाले पिछले रेल हादसों का अगर मूल्यांकन किया जाए तो तकरीबन 86 फीसदी हादसे मानवीय भूलों की वजह से होते हैं। अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रेल सिस्टम होने के बावजूद भारतीय रेल अब भी ब्रिटिश काल के इंफ्रास्टक्चर पर चल रही है। ट्रेनों की संख्या को देखते हुए साफ़ है कि रेल पटरियों पर ट्रैफिक का दबाव जिस हिसाब से बढ़ रहा है उसकी तुलना में इंफ्रास्टक्चर अपग्रेड नहीं हो पा रहा है।

गौरतलब है कि एक ओर तो सरकार देश में बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बना रही है, दूसरी ओर मूलभूत ढांचे में बदलाव नहीं होने की वजह से सामान्य ट्रेनों को इस तरह के हादसों से बचाने में सरकार नाकाम दिख रही है। रेलवे के सामने सुरक्षा और सरंक्षा एक बड़ा मसला बना हुआ है जहाँ सिग्नलिंग सिस्टम में चूक और एंटी कॉलीजन डिवाइसेज की कमी के कारण भी आए दिन हादसे होते रहते हैं।

इन विसंगतियों की सबसे बड़ी वजह यह है कि रेल हादसों के बाद बनी जांच समितियों की सिफारिशें कागजों पर ही रह जाती हैं। 1998 में बनी जस्टिस एच आर खन्ना कमेटी ने सेफ्टी को लेकर तमाम सिफारिशें की थीं जिन्हें महकमे ने मान तो लिया लेकिन जमीनी तौर पर इन्हें लागू किया जाना बाकी है। कमेटी ने रेलवे के डिब्बों के बीच होने वाले घर्षण में सुधार के लिए अमेरिका और यूरोप की एजेंसियों से तालमेल कर जरूरी ऊपाय किए जाने की सलाह दी थी। मोबाइल ट्रेन रेडियो कम्युनिकेशन कोप्राथमिकता पर रखे जाने की सलाह दी गई थी लेकिन अब भी यह मसला ‘लो प्रायरिटी’ पर है। रेलवे क्रॉसिंग पर सिग्नल की व्यवस्था में सुधार किए जाने की जरूरत अब भी महसूस की जा रही है। देश के करीब 23 हजार मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग भी एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं जहाँ आये दिन हादसे होते रहते हैं।

खन्ना कमेटी ने आपदा प्रशिक्षण सेल बनाए जाने की बात भी की थी, लेकिन आपदा प्रबंधन का स्तर अब भी उस स्तर पर नहीं है। रेल हादसों के बाद होने वाली जांच रिपोर्टों को सार्वजनिक की करने की सिफारिश भी की गई थी ताकि मुसाफिरों के भीतर भरोसा जगाया जा सके लेकिन इस सिफारिश को तो एक तरह से नजरअंदाज ही कर दिया गया।

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