रायपुर, 27 जनवरी= दंतवाड़ा जिले की ढोलकल पहाड़ी के शिखर पर स्थापित भगवान गणेश की दुर्लभ प्रतिमा के शुक्रवार को पहाड़ी के नीचे खण्डित अवस्था में प्राप्त होने के समाचार मिले हैं। पुलिस और प्रशासन की टीम मौके पर पहुंच गई है और यह प्रतिमा नीचे कैसे गिरी इस मामले की जांच की जा रही है।
इस बीच देश के वरिष्ठ पुरातत्वविद् अरुण कुमार शर्मा ने आरोप लगाया है कि प्रशासन और पुरातत्व विभाग ऐहितासिक धरोहरों को सहेजने में नाकाम साबित हो रहा है। गौरतलब है कि पुरातत्वविद् शर्मा को बीते बुधवार को ही भारत सरकार द्वारा पुरातत्व के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री देने की घोषणा की गई थी। करीब एक हजार साल पुरानी दुर्लभ गणेश प्रतिमा के नीचे गिरने और खण्डित होने की घटना पर शर्मा ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि वे कुछ साल पहले ही मौके का अवलोकन कर यह आशंका जता चुके थे कि यह प्रतिमा कभी भी गिर सकती है। इसकी वजह उन्होंने यह बताई थी कि पहाडी के जिस बोल्डर पर यह प्रतिमा स्थापित है उसमें दरारें आ चुकी हैं। उन्होंने प्रशासन को प्रतिमा और बोल्डर की तत्काल मरम्मत करने का सुझाव दिया था।
प्रतिमा के गिरने की घटना के बाद उन्होंने पुरानी बातों को दोहराते हुए कहा कि प्रशासन और पुरातत्व विभाग ने लगातार उनके सुझावों को अनदेखा किया है। प्रथम दृष्टया प्रतिमा गिरने की वजह चट्टान का जर्जर होकर खिसकाना प्रतित होता है। साथ ही मौसम में आई नमी ने भी जर्जर चट्टान को और कमजोर कर दिया। पुरातत्वविद् शर्मा कहते हैं कि जिस चट्टान पर यह प्रतिमा स्थापित थी उसकी ऊंचाई समुद्र तल से 2994 फीट थी। इतनी ऊंचाई पर पूरे देश में कहीं भी गणेश प्रतिमा स्थापित नहीं है। शर्मा ने प्रशासन के इस दावे को भी सिरे से खारिज कर दिया कि घटना में माओवादियों का हाथ हो सकता है। उनके मुताबिक नक्सलियों ने अब तक किसी देवी देवता की प्रतिमा को नुकसान नहीं पहुंचाया है। ऐसे में प्रशासन अपनी लापरवाही छिपाने के लिए नक्सलियों के नाम का सहारा ले रहा है।
शर्मा ने कहा कि उन्होंने कवर्धा जिले में स्थित एहितासिक भोरमदेव मंदिर को लेकर भी चेतावनी दी है। इस मंदिर में पत्थरों के बीच जगह-जगह दरारें पड़ रही हैं और ये दरारें धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो 4-5 वर्षों में भोरमदेव मंदिर के भी ढहने की आशंका है।