1984 के सिख दंगे में 2 दोषी करार, यशपाल को फांसी, नरेश को मिली उम्रकैद
दिल्ली. पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को 1984 सिख दंगों के मामले में 2 लोगों को सजा सुना दी. इस मामले में दोषी यशपाल को फांसी की सजा, जबकि दूसरे दोषी नरेश सेहरावत को कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है. एसआईटी द्वारा दर्ज किए गए 5 मामलों में पहले मामले में यह फैसला आया है. कोर्ट ने कहा कि 1984 में जो कुछ हुआ, वह बेहद बर्बर था. नरेश सेहरावत और यशपाल सिंह को कोर्ट ने दो सिखों हरदेव सिंह और अवतार सिंह को दिल्ली के महिपालपुर में दंगों में जान से मारने का दोषी पाया है.
सज़ा पाने वाले नरेश सहरावत 59 और यशपाल सिंह 55 साल के हैं. दंगों में मारे गए दोनों लोग हरदेव सिंह और अवतार सिंह की उम्र क्रमशः 1984 में 24 और 26 साल थी. गौरतलब है कि पटियाला हाउस कोर्ट ने गत बुधवार को 1984 के सिख विरोधी दंगों में 2 व्यक्तियों को 2 लोगों की हत्या के लिए दोषी ठहराया था. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने नरेश सेहरावत और यशपाल सिंह को दंगों के दौरान दक्षिण दिल्ली के महिपालपुर में हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या का दोषी ठहराया. महिपालपुर में 1984 में 2 लोगों के घर जलाने और हत्या के मामले में गत 14 नवंबर को पटियाला हाउस कोर्ट ने दोनों को दोषी करार दिया था. मृतक अवतार सिंह और हरदेव सिंह की हत्या करके उनका घर जला दिया गया था. फैसला बड़े ही नाटकीय अंदाज में सुनाया गया. सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए जज अजय पांडे ने कोर्ट रूम के बजाय यह फैसला पटियाला हाउस कोर्ट के लॉकअप में जाकर सुनाया. लॉक अप में इस फैसले को सुनाने के पीछे बड़ी वजह सुरक्षा कारण थे. पिछली सुनवाई पर 2 दोषियों में से एक पर कोर्ट रूम के बाहर निकलते ही अकाली नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने हमला कर दिया था. इसके बाद पटियाला हाउस कोर्ट में काफी हंगामा और अफरा-तफरी का माहौल हो गया था. कानून व्यवस्था को बनाए रखने और किसी भी तरह की हिंसक घटना को रोकने के लिए पटियाला हाउस कोर्ट में सुबह से ही बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात थे. पुलिस और और प्रशासन के बीच हुई कई बैठकों के बाद यह तय किया गया जज कोर्ट रूम में फैसला नहीं सुनाएंगे. इसकी एक बड़ी वजह पटियाला हाउस कोर्ट परिसर के अंदर और बाहर बड़ी संख्या में जुटे सिख समुदाय के लोग भी थे.
बंद कर दिया गया था मामला
यह मामला हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने दर्ज कराया था. दिल्ली पुलिस ने साक्ष्यों के अभाव में 1994 में यह मामला बंद कर दिया था, लेकिन दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने मामले को दोबारा खोला. अदालत ने दोनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की अनेक धाराओं के तहत दोषी ठहराया. फैसला सुनाए जाने के तत्काल बाद दोनों को हिरासत में ले लिया गया था. अदालत ने अपने फैसले में माना है कि बेशक इस मामले में फैसला आने में 34 साल लगे, लेकिन पीड़ितों को आखिर इंसाफ मिला है.