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हम जम्मू-कश्मीर सरकार को अल्पसंख्यक आयोग गठित करने के लिए निर्देश नहीं दे सकते : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 11 दिसम्बर (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक आयोग बनाने की मांग करनेवाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम जम्मू-कश्मीर सरकार को अल्पसंख्यक आयोग गठित करने के लिए निर्देश नहीं दे सकते हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वो इसके लिए जम्मू-कश्मीर सरकार से बात करे। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वे राज्य सरकार से बातचीत कर कोर्ट को बताएंगे।

पिछले 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अपना जवाब दाखिल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार दोनों को फटकार लगाई थी। तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि आप तीन महीने के अंदर इस पर अपनी रिपोर्ट दाखिल करें।

सुनवाई के दौरान जम्मू-कश्मीर के हलफनामे को कोर्ट ने खतरनाक बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि था ये हमारा मजाक है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर सरकार ने तुरंत अपना हलफनामा वापस ले लिया। केंद्र ने कहा था कि सरकार कई स्तरों पर सलाह मशविरा कर रही है।

याचिकाकर्ता अंकुर शर्मा जम्मू के वकील हैं। उन्होंने याचिका दायर कर मांग की है कि राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाए ताकि राज्य से अल्पसंख्यकों के धार्मिक और भाषायी हित सुरक्षित रहें। याचिका में कहा गया है कि राज्य में करोड़ों रुपये अल्पसंख्यकों के नाम पर खर्च हो रहे हैं। राज्य में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है लेकिन 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में मुस्लिमों की आबादी 68.31 फीसदी है।

याचिका का जम्मू-कश्मीर की सरकार ने विरोध करते हुए कहा था कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट 1992 को जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं करने का ये मतलब नहीं है कि वहां के अल्पसंख्यकों को सुविधाएं नहीं मिलेंगी। राज्य सरकार ने दलील दी थी कि कोर्ट किसी खास मसले पर कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती है।

पिछले 6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा दायर नहीं करने पर केंद्र सरकार पर तीस हजार रुपए का जुर्माना लगाया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे तुषार मेहता से कहा था कि अधिकतर मामलों में आपका रुख ऐसा ही रहता है।

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