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स्वामी चिदानन्द ने भारतीय छात्र संसद राष्ट्रीय सम्मेलन में किया सहभाग

ऋषिकेश, 19 जनवरी (हि.स.)। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने एमआईटी विश्व शान्ति विश्वविद्यालय, पुणे में आयोजित ’भारतीय छात्र संसद’ के तीन दिवसीय 8वें वार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता के रूप में सहभाग किया। 

महाराष्ट्र अभियान्त्रिकी एवं शैक्षणिक शोध अकादमी समूह का एमआईटी विश्व शान्ति विश्वविद्यालय, सबसे पहला संस्थान है। जिसकी स्थापना 1983 में विश्वनाथ डी. कराड द्वारा की गयी थी। यह महाराष्ट्र में निजी क्षेत्र के सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों में से एक है। इस विश्वविद्यालय का आदर्श वाक्य ’समाज कल्याण हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग’।

एमआईटी विश्व शान्ति विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानन्द मण्डप में भारतीय छात्र संसद, 8वें वार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन दीप प्रज्जवलन, ’विश्व शान्ति प्रार्थना’ एवं राष्ट्रीय गीत के गायन के साथ किया गया। 

देश विदेश से हजारों की संख्या में आये युवाओं को सम्बोधित करते हुए आध्यात्मिक गुरू स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि अब समय आ गया है ‘युवा संसद पूरे समाज को जोड़े; यह समय युवा संसद से समाज की ओर बढ़ने का समय है। युवा अपनी संस्कृति को जाने।’ उन्होंने कहा, ‘विवेकानन्द ने कहा था ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्त वरान्न्बिोधत क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति’ अर्थात् उठो! जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाएं। 

स्वामी ने कहा कि शिक्षा बहुत जरूरी है परन्तु मुझे लगता है कि अब दीक्षा का भी समावेश हो जीवन में, शिक्षा और दीक्षा चले साथ-साथ। जीवन में सर्टिफिकेट तो बटोरें पर संस्कारों को भी न छोड़े। शिक्षा जरूरी है परन्तु संस्कार बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि पांच चीजें बहुत जरूरी हैं जिन्हे कभी न भूले, अपनी माता, मातृभाषा (राष्ट्रभाषा), मातृभूमि, प्रकृति और पर्यावरण को कभी न भूले। भारतमाता और मातृभाषा का गौरव नितांत अवश्यक है।

पूज्य स्वामी ने दस हजार युवाओं और हजारों की संख्या में उपस्थित विशिष्ट अतिथियों को हाथों को उठाकर संकल्प कराते हुए कहा कि आज हमारे ’हैंड जुड़े एंड हार्ट जुड़े’ ’हाथ जुड़े और दिल जुड़े’ हमें मिलकर काम करने की आवश्यकता है इसी में राष्ट्र का समाज का विकास समाहित है।

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