लालफीताशाही में उलझा वेस्ट यूपी का विकास , हकीकत से कोसों दूर.
Uttar Pradesh.मेरठ, 05 फरवरी = प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने विकास कार्यों के दम पर फिर से सत्ता में आने का दावा कर रहे हैं। इसी तरह से भाजपा भी विकास के नाम पर वोट मांग रही हैं। बसपा भी ऐसा ही दावा कर रही हैं, लेकिन यह सब दावे वेस्ट यूपी में आकर हकीकत से कोसों दूर लगते हैं। वेस्ट यूपी में विकास कार्यों के सारे प्रोजेक्ट लालफीताशाही में उलझे हुए हैं। चाहे मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस वे हो या मेरठ में एयरपोर्ट का मामला। चाहे रैपिड रेल प्रोजेक्ट हो या डैडीकेटिड फ्रेट काॅरीडोर हो या कांवड़ मार्ग का चौड़ीकरण। सारे के सारे प्रोजेक्ट अटके हुए हैं।
कहने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के हिस्से हैं, लेकिन विकास के मामले में एनसीआर में शामिल राजस्थान और हरियाणा के जिलों से कोसों पीछे हैं। दिल्ली से सटा होने के बाद भी कनेक्टिविटी के मामले में वेस्ट यूपी पिछड़ा हुआ है। दिल्ली को वेस्ट के नजदीक लाने के दावे बहुत हुए हैं, लेकिन हकीकत कुछ ओर ही हैं। विकास के सारे प्रोजेक्ट सरकारी फाइलों में धूल फांक रहे हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल इन विकास कार्यों को लेकर दावे करता है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव इसकी राह में रोड़े अटका रहा है। एनसीआर बोर्ड की बैठक में हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्री खुद भाग लेते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि के तौर पर मेरठ के आयुक्त या मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ही जाते हैं। वेस्ट यूपी के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के नाम पर खानापूर्ति ही हो रही है।
दिल्ली और मेरठ के बीच रैपिड रेल सेवा चलाने की योजना कई सालों से चल रही हैं, लेकिन मामला डीपीआर और कमेटियों की रिपोर्ट से आगे नहीं बढ़ रहा है। जबकि परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। यह योजना पूरी तरह से लालफीताशाही में उलझी हुई है। इस योजना के अमल में आने पर दिल्ली और वेस्ट यूपी के शहर काफी नजदीक आ जाते।
मेरठ को जाम के झाम से बचाने के लिए मेरठ महायोजना 2012 में आउटर और इनर रिंग रोड की परिकल्पना की गई थी। बार-बार प्रोेजेक्ट तैयार होकर प्रदेश सरकार के पास मंजूरी के लिए जाते हैं, लेकिन कोई भी इन प्रोजेक्टों को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा।
दिल्ली से मेरठ की दूरी को कम करने के लिए एक्सप्रेसवे की कल्पना की गई थी। केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी भी दे दी, लेकिन भूमि अधिग्रहण का कार्य प्रशासनिक स्तर पर अटका होने के कारण अभी काम शुरू होने का इंतजार है। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस एक्सप्रेसवे को दो साल में बनाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन आज तक एक रोड़ा भी इस हाईवे पर नहीं डाला गया।
प्रदेश सरकार ने काफी समय पहले लखनऊ, मेरठ समेत चार शहरों में मेट्रो चलाने का खाका तैयार किया था। लखनऊ में तो मेट्रो शुरू भी हो गई। मेरठ में 2016 के आखिर में काम शुरू करने की बात कही गई, लेकिन यह योजना लालफीताशाही में उलझकर रह गई है। डीपीआर बनाने के अलावा आज तक कोई काम नहीं हुआ। मेट्रो में सफर का मेरठवासियों का सपना अभी केवल सपना ही बना हुआ है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए मेरठ में हवाई अड्डा बनाने का प्लान चला था। इसके लिए मेरठ की परतापुर हवाई पट्टी को हवाई अड्डे में बदलने के लिए प्रदेश सरकार और एयरपोर्ट अथॉरिटी आॅफ इंडिया के बीच करार भी हुआ। हवाई पट्टी को एएआई के हवाले भी कर दिया गया, लेकिन आज भी काम अटका हुआ है। प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रहण का मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है। विधानसभा चुनावों में भी किसी भी पार्टी के एजेंडे में हवाई अड्डे का निर्माण नहीं है।
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा के कारण 15 दिन तक पूरी वेस्ट यूपी बंधक बन जाती है। कांवड़ियों के सैलाब के कारण नेशनल हाईवे को बंद करना पड़ता है। कांवड़ यात्रा के लिए कई बार कांवड़ प्राधिकरण बनाने की बात चली, लेकिन यह केवल कागजों में ही रह गई। गंग नहर किनारे बने चौधरी चरण सिंह कांवड़ मार्ग का चौड़ीकरण करने की प्रदेश सरकार की घोषणा भी अभी तक हकीकत में नहीं बदली है।