राम पर सवाल नहीं तो ट्रिपल तलाक पर बवाल क्यों : सिब्बल
नई दिल्ली, 16 मई = ट्रिपल तलाक पर आज सुनवाई के चौथे दिन आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने ट्रिपल तलाक की वकालत करते हुए कहा कि ये चौदह सौ सालों से परंपरा चली आ रही है। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों में भेदभाव है ऐसे में केवल तीन तलाक पर ही रोक की बात क्यों हो रही है। उन्होंने कहा कि जब राम का अयोध्या में जन्म पर विश्वास किया जाता है तो फिर संविधान को बीच में लाने की क्या जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल से पूछा कि अगर व्हाट्सएप पर तलाक दिया जाता है तो क्या वह इस्लाम में मान्य है। कपिल सिब्बल ने कहा कि केंद्र कह रही है कि अगर सुप्रीम कोर्ट तलाक के तीनों रुपों पर रोक लगाती है तो वो कानून बनाएगी। लेकिन अगर संसद ने कानून बनाने से मना कर दिया तब क्या होगा ?
सिब्बल ने कहा कि मुस्लिम लॉ छोड़कर दूसरे धर्मों के कानून बनाए गए हैं जो कोर्ट के सामने एक बड़ी चुनौती है। संविधान में पर्सनल लॉ की रक्षा की गई है। निकाहनामा इस्लाम के मूल में है। मुस्लिमों में शादियां निकाहनामा के कांट्रैक्ट के जरिये होती हैं वैसे ही तलाक है। अगर शादी और तलाक दोनों ही कांट्रैक्ट है तो दूसरों को इसमें क्यों परेशानी हो रही है।
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सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसेफ कूरियन ने कपिल सिब्बल से पूछा कि पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया? इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो। अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई। ये आस्था का मामला है| कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता। जस्टिस कूरियन ने कहा कि कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं?
उन्होंने कहा कि जब हिन्दू रीति-रिवाजों की बात होती है तो कानून उसकी रक्षा करता है लेकिन जब मुस्लिम समुदाय के रीति-रिवाजों की बात होती है तो केंद्र सरकार इसे संवैधानिक नैतिकता के जरिये हटाना चाहती है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में पर्सनल लॉ की संवैधानिक रक्षा की जरुरत है। उन्होंने कहा कि मैं व्यक्तिगत रुप से सभी पितृसत्तात्मकता के खिलाफ हूं लेकिन परिवर्तन रातों रात नहीं आ जाएंगी। एक मुस्लिम बहुल देश में हिन्दुओं की रक्षा होनी चाहिए और एक हिन्दू बहुल देश में मुस्लिमों की रक्षा होनी चाहिए। हमें दूसरों की संस्कृति की भी रक्षा करनी चाहिए। अगर उसमें कुछ बुराई है तो उन्हें शिक्षित करना चाहिए और उन्हें अहसास कराना चाहिए कि वो खराब हैं और उस पर कानून बनना चाहिए।
सिब्बल ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के अधिकार को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक को लेकर बहुत सारी बहसें हुई हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट सोचता है कि वो छह दिन में पूरी बातें सुन लेगा। इतने कम दिन में इस पर किसी फैसले पर पहुंचना काफी मुश्किल काम है। सिब्बल ने संविधान सभा में हुई बहसों का हवाला देते संविधान निर्माताओं की सोच को बताने की कोशिश की।
कल इस मामले पर प्रतिवादियों की तरफ से वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन और वी गिरी अपनी दलीलें पेश करेंगे। कल ही याचिकाकर्ताओं की ओर से जवाब भी पेश किया जाएगा। कल इस मसले पर सुनवाई पूरी होने की संभावना है।