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यूपी विधानसभा चुनाव : वेस्ट यूपी के सियासी परिदृश्य से गायब चुनावी मुद्दे.

मेरठ, 22 जनवरी =  11 और 12 फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया खत्म होने में अब केवल दो दिन बचे हैं, लेकिन चुनावी मुद्दे सिरे से गायब हैं। उम्मीदवारों की दलबदल के बीच राजनीतिक दलों को हार-जीत के लिए केवल जातिगत और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का ही सहारा है।

वेस्ट यूपी में पहले और दूसरे चरण में मतदान होगा। पहले चरण के लिए 24 जनवरी तक नामांकन होंगे। जबकि दूसरे चरण के लिए भी नामांकन शुरू हो चुके हैं। राजनीतिक दल इन चुनावों को लेकर इतने गंभीर हैं कि अभी तक सभी दलों ने अपने प्रत्याशियों का भी ऐलान नहीं किया है। सियासी मुद्दे तो पूरी तरह से गायब ही है जबकि आम जनमानस इन चुनावी मुद्दों या समस्याओं से साल-दर-साल रूबरू होते हैं और इनके हल होने की उम्मीद लगाते हैं।

हाईकोर्ट बेंच

आजादी के बाद से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच स्थापित होने की मांग होती आ रही है। 40 साल से तो वकील इस मुद्दे को लेकर उग्र आंदोलन तक कर चुके हैं। वकीलों ने इसके लिए बहुत लंबी हड़ताल की और राजनीतिक दलों पर दबाव भी बनाया, लेकिन आज तक हाईकोर्ट बेंच नहीं बनी। फिलहाल भी यह किसी राजनीतिक दल के एजेंडे में नहीं है।

हरित प्रदेश

एक समय राष्ट्रीय लोकदल ने अपनी सियासी जमीन स्थापित करने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग हरित प्रदेश बनाने का नारा दिया था। समय के साथ रालोद इस मुद्दे को भूल गया। नया प्रदेश बनने से यहां के लोगों को विकास के नए आयाम देखने को मिलते। अब यह मुद्दा हाशिये पर चला गया है।

गन्ना

वेस्ट यूपी की राजनीति का अहम मुद्दा होने के बाद भी गन्ना किसान बर्बादी की कगार पर हैं। किसान हितों के संरक्षक होने का दावा करने वाले भी मौका मिलने पर गन्ना किसानों को भूल जाते हैं। किसानों का चीनी मिलों पर हजारों करोड़ रुपए गन्ना मूल्य बकाया है। इसके साथ ही किसानों की गन्ना का उचित दाम नहीं मिलने की शिकायत को भी सभी दलों ने अनसुना कर दिया है।

अवैध खनन

अधिकारियों और राजनेताओं के लिए कमाई के मोटा स्रोत बने अवैध खनन से वेस्ट यूपी की जनता त्रस्त है। सरकारों में हजारों करोड़ में अवैध खनन के ठेके छूटते हैं, लेकिन इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, बिजनौर आदि सभी जिलों में यह मुद्दा हावी रहा है, लेकिन सियासी दलों के लिए यह अछूत है।

सड़क, रेलवे लाइन

भले ही प्रदेश सरकार एक्सप्रेस वे बनाने के दावे कर रही हो, लेकिन वेस्ट यूपी में खस्ताहाल सड़कों का जाल बिछा है। दिल्ली-यमुनोत्री राजमार्ग पिछले पांच सालों से बदहाल है। इसके अलावा जिलों के संपर्क मार्ग भी टूटे पड़े हैं। दिल्ली-शामली-सहारनपुर रेलवे लाइन का विद्युतीकरण आदि मुद्दे भी ठंडे बस्ते में पड़े हुए हैं।

ट्रैफिक जाम, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी बेअसर

वेस्ट यूपी में ट्रैफिक जाम, आम जनजीवन में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, बढ़ते अपराध, पर्यावरण प्रदूषण, जहरीला होता पेयजल आदि कोई चुनावी मुद्दा नहीं है। केवल स्थानीय चुनावों में यह मुद्दे बनते हैं। अब राजनीतिक दलों को केवल जातिगत और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ही आस है। इससे वह अपनी जीत का परचम फहरा सकेगी।

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