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मुख्यमंत्री जी, फतेहपुर में हैसियत एवं चरित्र प्रमाण पत्र बनवाना टेढ़ी खीर

फतेहपुर, 10 मई = हैसियत और चरित्र प्रमाण पत्र बनवाना जनपद में टेढ़ी खीर हो गया है। लोग आवेदन कर तहसील व प्रशासनिक अधिकारियों के यहां चक्कर काटते रहते हैं पर संबंधित अधिकारी व कर्मचारी बिना सुविधा शुल्क लिए फाइल आगे नहीं बढ़ाते हैं। अब तो आवेदकों को यह भी नहीं पता चल पा रहा कि उनकी हैसियत और चरित्र प्रमाण पत्र की पत्रावली किस स्तर पर लम्बित है।

कलेक्ट्रेट के संयुक्त कार्यालय में हैसियत और चरित्र प्रमाण पत्र बनाने के लिए रिश्वतखोरी का खेल जारी है। यहां सुविधा शुल्क नहीं देने पर प्रमाण पत्र सालों तक जारी नहीं होते हैं। ऐसा ही एक मामला शहर की रहने वाली सीता श्रीवास्तव का प्रकाश में आया है। उन्होंने लगभग ढाई वर्ष पूर्व हैसियत एवं चरित्र प्रमाण पत्र के लिए आवदेन कलेक्ट्रेट स्थित संयुक्त कार्यालय की संबंधित पटलों पर किया था। कई बार पत्रावली की स्थिति जानने के लिए कलेक्ट्रेट में संपर्क किया, लेकिन उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। यहां तक की लगातार तहसील व पुलिस कार्यालय भटकाया जाता रहा।

सीता का कहना है कि उसने पुलिस की सत्यापन प्रक्रिया में भी पूरा सहयोग किया। बावजूद इसके अभी तक उसे प्रमाण पत्र जारी नहीं हो सके हैं। इतना ही नहीं हैसियत प्रमाण पत्र के लिए भी आवेदिका ने संबंधित तहसील कर्मचारियों से संपर्क किया और आवश्यक कागजात सौंपे, लेकिन वहां की प्रक्रिया भी इतने लम्बे समय के बाद भी पूरी नहीं हो सकी। सवाल यह उठता है कि शासन की इस महत्वपूर्ण व्यवस्था के प्रति जिम्मेदारों की भूमिका किसी भी जवाबदेही के लिये तैयार नहीं है। ऐसे ही तमाम और भी मामले हैं, जहां पर आवदेकों को सालों संबंधित पटल प्रभारी के पास चक्कर काटते हो गया, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया।

ठेकेदारी के लिये संबंधित फर्म संचालक को हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र की महती आवश्यकता होती है। जो सीधे जिला अधिकारी के हस्ताक्षर से ही जारी होते हैं। हास्यासपद विषय यह है कि कलेक्ट्रेट का संयुक्त कार्यालय जो सीधे जिला अधिकारी कक्ष के सामने स्थित है। वहां पर इन दोनों प्रमाण पत्रों के लिये पत्रावलियां प्राप्ति की कोई व्यवस्था नहीं है। पटल प्रभारियों का कहना है कि उन्हें किसी प्रकार की रिसीविंग का आदेश नहीं है। पत्रावली आगे बढ़वाना है तो ऐसे ही दे जाओ, अन्यथा जिस तरह से संतुष्ट हो वैसी प्रक्रिया अपनाओ।

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हैसियत प्रमाण पत्र के लिये पत्रावली की एक प्रति संबंधित तहसील के उपजिला अधिकारी के माध्यम से तहसील पहुंचती है। जिसमें तहसीलदार इस पत्रावली को संबंधित क्षेत्र के नायब तहसीलदार को भेज देता है। जहां से संबंधित क्षेत्र के राजस्व निरीक्षक को भेजी जाती है। राजस्व निरीक्षक फिर उस पर लेखपाल की आख्या तलब करता है। इन सब में कहीं पर भी समयावधि की कोई बाध्यता नहीं होने से आवेदक को जल्दी काम कराने के लिये सुविधा के सिस्टम को अपनाने पर बल दिया जाता है। अगर उसने सिस्टम अपना लिया तो फिर काम दाम के मुताबिक होता जायेगा और यदि ऐसा नहीं किया तो आवेदक को इस बाबत कुछ बताने के बजाय यह कह कर वापस कर दिया जाता है कि रिपोर्ट भेज दी जायेगी या भेज दी गयी है। आवेदक तहसील स्तर से अपना काम कराने में सफल हुआ तो फिर उपजिला अधिकारी कार्यालय पत्रावली पहुंचने पर बड़ी रकम की बात शुरू होती है, जो संबंधित पटल पर एक जटिल प्रक्रिया के बाद सम्पन्न होती है। इस सब में जहां आवेदक को जगह-जगह ठगा जाता है, वहीं कई माह का समय भी जाया होता है।

इसी तरह चरित्र प्रमाण पत्र के लिये डीएम कार्यालय से पत्रावली एसडीएम के जरिए पुलिस कार्यालय होते हुये सीओ ऑफिस, कोतवाली और फिर संबंधित पुलिस चौकी पहुंचती है। यहां पर भी सुविधा शुल्क का खेल आवदेक को तंग करता रहता है। चरित्र प्रमाण पत्र के लिए पुलिस की रिपोर्ट औपचारिक इसलिए भी कही जा सकती है कि संबंधित चौकी से आवेदक को अपने क्षेत्र के सभासद से चरित्र प्रमाण पत्र बनवाकर लाने को कहा जाता है। इतना ही नहीं आवेदक को एक शपथ पत्र भी देना होता है। जिसमे इस बात का स्पष्ट उल्लेख करना रहता है कि उसके खिलाफ किसी भी प्रकार का कोई मुकदमा विचाराधीन नहीं है। सवाल यह उठता है कि जब हलफनामा मात्र से उसके अपराधिक चरित्र को पुलिस आधार मान लेती है तो फिर इतनी जटिल प्रक्रिया का क्या मतलब है? यही नहीं चरित्र प्रमाण पत्र के लिए भी आवेदक को तहसील की रिपोर्ट चाहिए होती है, जिसमें लेखपाल, राजस्व निरीक्षक, नायब तहसीलदार और फिर तहसीलदार को आख्या देनी होती है। जिससे यह स्पष्ट हो कि उस पर किसी प्रकार का राजस्व बकाया नहीं है। यहां पर भी संबंधित कर्ताधर्ता हलफनामा की पग-पग पर मांग करते हैं।

चरित्र एवं हैसियत प्रमाण के लिये समूची शर्तें पूरी कर लेने के बाद कलेक्ट्रेट स्थित पटल प्रभारी पुनः आवेदक से शपथ पत्र मांगते हैं। इतना ही नहीं जिस प्रारूप में डीएम के हस्ताक्षर होते हैं, वह पत्रावली भी आवेदक को ही पटल प्रभारी के निर्देशन में तैयार करानी होती है। यहां पर बात अकेले प्रशासनिक जिम्मेदारों की अदूरदर्शिता की नहीं सिस्टम की पेंचीदगियों से भी जुड़ी है। कभी माया सरकार तो कभी अखिलेश सरकार में इस उगाही पूर्ण जटिल प्रक्रिया पर आक्षेप लगते थे, लेकिन योगी सरकार में भी इसके लिए उत्पीड़नात्मक एवं थकाऊ सिस्टम से आवेदकों को जूझना पड़ रहा है, जो अच्छे दिन का दावा करने वालों की कथनी और करनी में फर्क को प्रदर्शित करता है। इस बाबत सूबे के मुख्यमंत्री से भी शिकायत हुई है। समय-समय पर शासन को भी अवगत कराया जाता रहा है, लेकिन सिस्टम का बेढंगापन अभी भी सिर चढ़ कर बोल रहा है।

सरकार की सख्ती का सरकारी दफ्तरों में कोई असर होता नहीं दिख दे रहा है। उच्चाधिकारियों की नाक के नीचे होने वाले इस काले खेल पर अंकुश नहीं लग सका। प्रदेश में सरकार भले ही बदल गयी है, लेकिन सरकारी मुलाजिमों के कामकाज का तरीका आज भी पुराना है। जिलाधिकारी कार्यालय में रिश्वतखोरी का मामला उस समय प्रकाश में आया जब एक शहीद फौजी की पत्नी अपनी हैसियत प्रमाण पत्र बनवाने गयी तो संबंधित लिपिक ने उसे तब तक परेशान किया जब तक उससे अपनी मुंहमांगी रकम नहीं हासिल कर लिया। हलांकि जिलाधिकारी मामले पर अनभिज्ञता जता रहे हैं।

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