मुंबई – महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास से है अद्भुत जुड़ाव
महालक्ष्मी, महाकाली व महासरस्वती की भक्तों पर होती है कृपा
मुंबई. मुंबई के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है महालक्ष्मी मंदिर. (mumbai mahalakshmi mandir) यह समुद्र के किनारे भूलाभई देसाई मार्ग पर स्थित है. महालक्ष्मी मंदिर अत्यंत सुंदर, आकर्षक और लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. महालक्ष्मी मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी की गई है. मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित हैं.
मंदिर का इतिहास-
महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास अत्यधिक रोचक है. अंग्रेजों ने जब महालक्ष्मी क्षेत्र को वर्ली क्षेत्र से जोड़ने के लिए ब्रीच कैंडी मार्ग की योजना बनाई तब समुद्र की तूफानी लहरों के चलते पूरी योजना विफल होती नजर आई. ऐसा कहा जाता है कि उस समय देवी लक्ष्मी एक ठेकेदार रामजी शिवाजी के स्वप्न में प्रकट हुईं और उन्हें समुद्र तल से देवियों की तीन प्रतिमाएं निकालकर मंदिर में स्थापित करने का आदेश दिया. रामजी ने ऐसा ही किया और ब्रीच कैंडी मार्ग का निर्माण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. एक अंग्रेज हॉर्नबाय वेल्लार्ड ने 1785 में मंदिर का निर्माण करवाया.
मंदिर का महत्व –
मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती तीनों देवियों की प्रतिमाएं एक साथ विद्यमान हैं. तीनों प्रतिमाओं को सोने एवं मोतियों के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है. यहां आने वाले हर भक्त का यह दृढ़ विश्वास होता है कि माता उनकी हर इच्छा पूरी करेंगी.
पुजारी और मंदिर की तैयारियां –
मंदिर प्रबंधन ट्रस्ट के प्रबंधक भालचंद्र वालावलकर ने बताया कि मंदिर के मुख्य पुजारी प्रकाश साधले हैं. उनके साथ दो अन्य पुजारी अरुण विरकर और महेश कजरेकर हैं. कुल मिलाकर 15 पुजारियों का स्टाफ है, जो सिफ्ट में कार्य करते हैं. उन्होंने कहा कि नवरात्रि के पहले दिन मंदिर खुलने के बाद सुबह 6:00 से रात्रि 9:00 बजे तक श्रद्धालुओं को दर्शन दिया जा रहा है. इसके लिए भक्तों को मंदिर की वेबसाइट WWW.MAHALAKSHMITEMPLEMUMBAI पर बुक करने के बाद अपने स्लाट के अनुसार दर्शन की अनुमति होती है. भक्तों को दूर से ही दर्शन कराया जाता है, चौखट के पास किसी को आने की अनुमति नहीं है. उन्होंने कहा कि तीनों देवियों के स्वर्ण मुकुट साफ-सफाई के बाद हाल ही में लगाए गए हैं और श्रंगार किया गया है. देवी के दरबार को भव्य सजाया गया है. मंदिर के दरवाजे और अन्य भाग की सफाई की गई है.
देवी की आरती-
भालचंद्र के अनुसार हर दिन सुबह 6 बजे मंदिर खुलता है. 7 बजे आरती होती है. दोपहर में नैवेद्य (भोग) आरती होती है. शाम को 6.30 बजे धूप आरती और शाम 7.30 बजे बड़ी आरती होती है. रात्रि 10 बजे सेज आरती की जाती है.