जगदलपुर, 18 अप्रैल (हि.स.)। बस्तर के आदिवासियों के द्वारा खाद्य पेय के रूप में उपयोग किये जाने वाला मड़िया अपने मौजूदा पोशक तत्वों और कैल्शियम के प्रचुर भंडार एवं मधुमेह को नियंत्रित रखने में सहायक होने के कारण भारी मात्रा में विदेशों में निर्यात किया जा रहा है।
बस्तर में उपजने वाली मड़िया पूरे दुनिया में अपने गुणों के कारण सराही जा रही है। इस पौष्टिक आहार को भारत के अलावा दुनिया के अन्य देशों में भी रेशा, कैल्शियम और लौह तत्वों के साथ थाईमिन और राइबोफ्लेविन जैसे पोषक संगठकों की प्रचुर मौजूदगी के लिए जाना जाता है।
इसे रागी भी कहते हैं, इसकी खेती बस्तर के आदिवासी जैविक तरीकों से करते हैं। इसलिए इसमें मौजूद पोषक तत्व जैविकता के साथ मौजूद रहता है। मड़िया अपनी गुणवत्ता के कारण दुनिया में विशेष स्थान बनाये रखा है। भारत में यह मुख्यत: कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट, तथा बिहार आदि राज्यों में उगाई जाती है। फसल का रकबा विशेष रुप से शुष्क और वर्षा आधारित क्षेत्रों में बढ़ने लगता है। पानी की उपलब्धता में फसलों की चयनता सीमित हो रही है। वहीं रागी अर्थात मड़िया कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देकर कारगर सिद्ध हो रहा है। रागी का उपयोग आदिवासी फसल के रुप में करते है तथा इसका उपयोग ग्रामीणों द्वारा अधिकता से किया जाता है। इसमें रेशा अधिक होने से सुपाच्य है तथा इसके सेवन से जहां बच्चों की हड्डियों का शीघ्र विकास होता है, वहीं वयस्कों तथा वृद्धों की हड्डिया भी मजबूत होती हैं।