भ्रष्टाचार निवारण में लालू प्रसाद यादव के साथ भेदभाव न हो.
नई दिल्ली 9 जुलाई ( सुधांशु द्विवेदी ) : राजद सुप्रीमों और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के सामने कुछ संकटमय स्थिति नजर आ रही है। अपने बेवाक बयानों के लिये चर्चित और गरीबों के मसीहा के रूप में लोकप्रिय लालू यादव के परिवार के सदस्यों पर कथित भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों को लेकर सीबीआई और ईडी द्वारा जिस ढंग से शिकंजा कसा जा रहा है, उससे इन जांच एजेंसियों की सक्रियता तो परिलक्षित होती है लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या सिर्फ लालू यादव के परिजन की इस ढंग से घेराबंदी करने से देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा।
लालू पर आरोप लगा है कि उन्होंने रांची और पुरी के चाणक्य बीएनआर होटल जो कि रेलवे के हेरिटेज होटल थे, रेल मंत्री रहते हुए इन होटलों को अपने करीबियों को लीज पर दिया था। ये दोनों होटल अंग्रेजों के दौर के थे, इसीलिए इनका ऐतिहासिक महत्व था पर अब नहीं रहा। इन होटल्स को पूरा रेनोवेट कर दिया गया है। रांची के कुछ होटल व्यवसायियों के अलावा लालू प्रसाद यादव के निकट के सहयोगी एवं झारखंड से राज्यसभा सांसद प्रेमचंद गुप्ता की कंपनी दोनों होटलों को लेने में सफल रही। रांची के बीएनआर होटल को पटना के प्रसिद्ध होटल चाणक्य के संचालक हर्ष कोचर को 60 साल के लिए लीज पर मिल गया। पहले तो लीज की अवधि 30 वर्ष रखी गयी, परन्तु बाद में इसकी अवधि बढ़ाकर साठ साल कर दी गई।
लालू यादव के खिलाफ इस नए मामले में सीबीआई को कई महत्वपूर्ण दस्तावेज हाथ लगने का दावा किया जा रहा है। लालू यादव के दिल्ली और गुडग़ांव स्थित फार्म हाउस पर सीबीआई की टीम ने 2006 के सभी दस्तावेजों को कथित तौर पर अपने कब्जे में ले लिया है। साथ ही पुराने पड़े लैपटॉप को भी सीबीआई द्वारा जब्त किया गया है। जाहिर सी बात है कि सरकारी जांच एजेंसियों द्वारा इस तरह जांच पड़ताल व कार्रवाई से लालू यादव का परेशान होना तो स्वाभाविक ही है। वैसे सरकार को चाहिये कि वह भ्रष्टाचार के मामलों में बिना किसी भेदभाव के काम करे तथा किसी को भी ऐसा महसूस नहीं होना चाहिये कि राजनीतिक विरोधियों के दमन और उत्पीड़न के लिए भ्रष्टाचार के विभिन्न मुद्दों और सरकारी जांच एजेंसियों का सहारा लिया जा रहा है।
लालू यादव के परिजन पर कस रहे शिकंजे के बीच राष्ट्रीय जनता दल के नेता खुलकर यह आरोप लगा रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी लालू यादव से डर गई है तथायादव द्वारा पटना में 27 अगस्त को प्रस्तावित भाजपा विरोधी रैली को सफल होने से रोकने के लिये इस तरह का दबाव बनाया जा रहा है। दूसरी ओर केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू कह रहे हैं कि लालू यादव के परिवार के खिलाफ चल रही जांच-पड़ताल व कार्रवाई में भाजपा का कोई हाथ नहीं है। अब वेंकैया नायडू कितना सच बोल रहे हैं और कितना झूठ, यह उनकी नीयत पर निर्भर करता है। अगर लालू यादव के परिवार पर राजनीतिक द्वेषवश यह विपदा थोपी गई है तो फिर भाजपा नेताओं को यह मान लेना चाहिये कि राजनीतिक सत्ता कभी स्थायी नहीं होती। केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हें भी ऐसे विषम हालात का सामना करना पड़ सकता है। लालू यादव कह रहे हैं कि चाहे मैं मिट जाऊं लेकिन भाजपा के समक्ष झुकूंगा नहीं। वहीं कथित भ्रष्टाचार विरोधी इन कवायदों के बीच बिहार की राजनीति में भी काफी हलचल बढ़ गई है।
लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव बिहार की नीतीश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं तो छोटे बेटे तेजस्वी यादव राज्य के उप मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में अब भाजपा की बिहार इकाई के नेताओं द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह लालू यादव के बेटों को मंत्रिमंडल से हटाएं। अब नीतीश कुमार भाजपा नेताओं के दबाव में किस हद तक आते हैं, यह देखने वाली बात होगी। बिहार में लालू यादव मौजूदा समय में राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत स्थिति में हैं। राज्य में उनके विधायकों की संख्या नतीश की पार्टी जदयू के विधायकों से भी ज्यादा है। इस स्थिति में नीतीश कुमार द्वारा लालू यादव के बेटों को मत्रिमंडल से हटाकर अपनी ही सरकार को अस्थिर करने का जोखिम उठाया जाएगा कि नहीं, यह भविष्य में देखने वाली बात होगी।