जमशेदपुर, 01 मई = कहने को खुबसूरत श्रमिक शहर है जमशेदपुर मगर यहाँ ऐसे अनेक स्थान हैं, जहां मजदूरों के श्रम की बोली लगती है। वहां उन मजदूरों को उनकी योग्यता के अनुसार खरीदा जाता है। इस हाट में आपको सभी प्रकार के मजदूर जैसे मिस्त्री, कूली और रेजा तक बाजार भाव मे मिल जांएगे। लेकिन ये मजदूर रविवार या पर्व तैयार को छोड़कर सभी दिन इस बाजार में आपको मिल जाएंगे और ये मजदूर भी बाबुओं की तरह शाम के पांच बजे छोड़कर चले जाएंगे। क्योकि इन लोगों का काम सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक ही होगा। इस दौरान ये एक घंटे का लंच भी लेते हैं और इन मजदूरों को आप अपने साथ दिन ,सप्ताह या ठेकेदारी के हिसाब से ले जा सकते हैं। अगर ठेके में ले जाते हैं, यदि एक सप्ताह से अधिक काम है तो प्रत्येक शनिवार को ये अपना मजदूरी लेते हैं।
शहर में ऐसे कई स्थान है जहां मजदूरों की बोली लगती है, वैसे इन मजदूरों की मजदूरी अलग-अलग तय रहती है। रेजा या मिस्त्री हो सभी प्रकार के मजदूर यहां मिल जाते हैं। ये सभी मजदूर सुबह सात बजे हाट पर पहुंच जाएंगे । नौ बजे सुबह के बाद ही कोई मजदूर मिल पाएंगे। शाम के पांच बजे के बाद अधिक से अधिक छह बजे के बाद सभी मजदूर वापस घर लौट जाते है। ये मजदूर मानगो चौक, डिमना मोड़, टाटा स्टील के साकची और जुगसलाई गे, टाटानगर स्टेशन के पास, आदित्यपुर के ईमली गाछ के पास मिलते है।
PM मोदी व कांग्रेस ने मजदूर दिवस पर श्रमिकों की कड़ी मेहनत को किया सलाम
ये सभी मजदूर जमशेदपुर से सटे ग्रामीण इलाके घाटशिला, चाकुलिया, गालुडीह, महालीमुरुप बीरंबांस,सीनी ,राजखरंसावा ,पोटका, पटमदा, हाता , हल्दी पोखर आदि स्थानों से आते हैं । कई मजदूर ट्रेन ,बस या अपने साइकिल के माध्यम से शहर सुबह सात बजे तक पहुंच जाते हैं और काम करके शाम के सात और आठ बजे तक अपने घर पहुंच जाते हैं। कई मजदूर तो 25 से 30 किलोमीटर का साइकिल चलाकर आते हैं और साइकिल से काम कर फिर वापस चले जाते है।
इन मजदूरों की खासियत यह है कि रविवार हो या पर्व त्योहार इन दिनो ये मजदूर आपको नहीं मिलेंगे । क्योंकि इस दिन ये छुट्टी मनाते हैं । उन्हें अगर मजदूरी डबल करने की लालच पर ही छुट्टी के दिन बुलाया जा सकता है। लेकिन छुट्टी की बात कह कर नहीं आएंगे। वो इस दिन सिर्फ अपने परिवार के साथ रहना पसंद करते हैं। इस सदर्भ में रेजा का काम करने वाली सुकुरमणी ने बताया कि रविवार के दिन हमलोग परिवार के साथ रहना पसंद करते है और सप्ताह भर का घरेलू सामान खरीदते हैं, क्योंकि हमलोगों को शनिवार को मजदूरी मिलती है और रविवार को घर का खाने पीने की सामान खरीदते हैं।
इस दौरान गांव से आए सभी मजदूर एक दूसरे का ख्याल रखते हैं। अगर किसी को काम नहीं मिलता है तो उसके साथ अन्य साथियों जिन्हें काम मिल जाता है उसका ख्याल रखते हुए उसे भी अपने साथ काम पर ले जाते हैं, ताकि वह खाली हाथ घर न लौटे।
इन मजदूरों को पीएफ या ईएसआई की सुविधा नहीं मिलती है और न ही सरकार की ओर किसी प्रकार की सुविधा मिलती है। क्योंकि ये किसी कंपनी या ठेकेदार के स्थायी रूप से मजदूरी का काम नहीं करते हैं । इस कारण इनको किसी भी प्रकार का लाभ नहीं मिल पाता है। खासकर जब इनके घर में किसी का तबीयत खराब होता है तो इन मजदूरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। तब ये महाजन से ब्याज पर पैसे लेते है और जब मजदूरी मिलने पर धीरे-धीरे करके पैसा चुकाते हैं।
इन मजदूरों की मजदूरी दर तय है मिस्त्री 350 से 450 रुपये, कूली की मजदूरी 250 से 300 रुपये, रेजा की मजदूरी 200 से 220 रुपये है। वहीं गाड़ियों में लोडिंग करने वाले मजदूरों का मजदूरी दर लोड किये जाने वाले समानों पर निर्भर होता है। जैसे- गाड़ी में रड लोड करने पर 150 रुपया प्रति टन, बाबरी लोड करने पर 200 रुपया प्रति टन, स्क्रैप लोड करने पर 225 रुपया प्रति टन, चावल ,आटा या अन्य बोरा लोड करने पर 15 से 20 प्रति बोरा (75 किलो ग्राम तक ) इसके साथ ही सीमेंट को बोरा लोड करने में 5 रुपया प्रति बोरा ये मजदूर लेते हैं।