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बुन्देलखण्ड में फसलों की तबाही का कारण बन रहे अन्ना पशु

उरई, 14 दिसम्बर (हि.स.)। बुन्देलखण्ड में अन्ना पशु प्रथा किसानों के लिए जीवन-मरण का सवाल बन गई है। सरकार इस मामले में थोथी घोषणाओं के अलावा कुछ नहीं कर पा रही है। इसके चलते अरबों रुपये की कृषि सम्पदा से ग्रामीणों का हाथ धोना पड़ रहा है।

क्या है अन्ना पशु प्रथा

मवेशी जब दूध देना बंद कर देता है तो लोग उसे छुट्टा छोड़ देते हैं। गांवों के आसपास चारागाह न रह जाने से इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। गौ वंशीय मवेशी सबसे ज्यादा अन्ना छोड़े जाते हैं। जालौन जिले के गांव-गांव में सैकड़ों की संख्या में आवारा गाय, बछड़े खेतों से सड़कों तक विचरते दिख जाते हैं। इनका झुंड जिस लहलहाते खेत में घुस जाता है कुछ ही देर में वह वीरान हो जाता है। किसानों को पूरी रात आवारा मवेशियों को खदेड़ते हुए गुजारनी पड़ती है।

यातायात और कानून व्यवस्था के लिए भी संकट

अन्ना जानवरों के बहुतायत के कारण सड़कों पर जाम की स्थिति बनी रहती है। दूसरी ओर इसकी वजह से ग्रामीणों में झगड़े फसाद बढ़ रहे हैं। एक जगह के लोग जब अपने गांव की सीमा से बाहर मवेशियों को खदेड़ने के लिए दौड़ते हैं तो सीमांत पर नाकाबंदी किये खड़े दूसरे गांव के लोग उनका मुकाबला करने लग जाते हैं। कई बार इस वजह से गंभीर संघर्ष हो चुके हैं।

अन्ना उन्मूलन की कोशिशें

अन्ना प्रथा के उन्मूलन के लिए पशु पालन विभाग के माध्यम से सरकार ने बंध्याकरण और नस्ल सुधार की योजनाओं में काफी बजट खर्च किया है। इन कार्यक्रमों की उपलब्धियों की कागजी फेहरिस्त तो लंबी चौड़ी है। लेकिन जमीनी स्तर पर इसका असर नगण्य रहा हैै। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. आरपीएस गौर ने बताया कि नस्ल सुधार कर अधिक दूध देने वाले मवेशी तैयार करने के लिए अभी तक 25 हजार 101 मवेशियों को कृत्रिम गर्भाधान कराया गया। देशी सांडो के माध्यम से नस्ल सुधार के लिए 222 गायों का गर्भाधान हुआ। इसके अलावा 10937 मवेशियों का बंध्याकरण कराया गया।

चारागाहों के विकास की योजना

मुख्य विकास अधिकारी एसपी सिंह का कहना है कि पहले जिले में पर्याप्त खाली क्षेत्र हर गांव के आसपास रहता था जहां मवेशी पर्याप्त चर लेते थे। आबादी के विस्तार व जमीन की मारामारी की वजह से अब चारागाह विलुप्त हो गये हैं। इस वित्तीय वर्ष में 29 नये चारागाह क्षेत्रों को विकसित करने की योजना मनरेगा व अन्य मदों से प्रशासन ने तैयार की है, जिसके तहत 25 हैक्टेयर से ज्यादा जमीन को कवर किया जायेगा।

गौ वंशीय वन विहार

शासन ने गौ वंशीय वन विहार की योजना हर जिले के लिए तैयार की है। इसमें एक हजार गायों को रखने की व्यवस्था की जायेगी। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. आरपीएस गौर ने बताया कि इस वन बिहार के लिए 25 एकड़ जमीन वांछनीय है। जिसमें 4-5 एकड़ की व्यवस्था ग्राम समाज की भूमि से और शेष वन क्षेत्र से की जानी है। इस जमीन पर विकसित वन बिहार में मवेशी दिन भर खुले में चरेगें। रात में इनको शैड के नीचे बांधकर रखा जायेगा। यह बाड़ा चार-पांच एकड़ का होगा। इसमें रखवाली के लिए कर्मचारी भी नियुक्त होंगे। जिले में डकोर ब्लाक के मुहाना में 51 हेक्टेयर जमीन तलाशी गई है जिस पर गौ वंशीय वन विहार विकसित करने का प्रस्ताव तैयार कर उनके विभाग ने जिलाधिकारी के माध्यम से शासन को भेजा है।

मुकदमे के आदेश

जिलाधिकारी डा. मन्नान अख्तर ने कहा कि अन्ना पशु प्रथा से छुटकारे के लिए ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को अपनी आदत बदलने के लिए मजबूर करना पड़ेगा। जो लोग दूध देना बंद करने के बाद मवेशी को अन्न किसानों का नुकसान करने के लिए अन्ना छोड़ देते हैं उनके खिलाफ सभी थानों में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिये गये हैं। तहसीलदारों से कहा गया है कि वे नियमित रूप से समीक्षा करें कि उनके तहसील क्षेत्र में अन्ना पशु प्रथा के कितने मुकदमे लिखे गये हैं और कितनों में चार्टशीट भेजी गई है। वैसे जिलाधिकारी को यह आदेश जारी किये हुए एक माह हो चुका है। लेकिन अभी तक एक भी एफआईआर दर्ज होने की जानकारी नही है।

सामाजिक पहल

गौ सेवा के लिए कई वर्षों से समर्पित वीरेंद्र सिंह बिरहरा का कहना है कि अन्ना समस्या का अंत करना शासन-प्रशासन के बूते की बात नहीं है। इसके लिए समाज को आगे आना होगा। उन्होंने खकसीस, दमरास कई गांवों में मवेशी वालों के समूह बनवाये हैं जो एक जगह मवेशियों को रखकर सामूहिक खर्च से उनके चारे पानी की व्यवस्था करते हैं। हालांकि रूरा अडडू जैसे कुछ गांवों में इस व्यवस्था के कर्ता-धर्ताओं की लापरवाही के कारण बाड़े में बंद कई मवेशियों की भूख से तड़पते-तड़पते मौत हो गई। लेकिन शिकायत करने पर भी प्रशासन इस मामले में कार्रवाई करने में रुचि नही लेता। समाजसेवी कृपा शंकर द्विवेदी बच्चू महाराज ने बताया कि गौ वंश के साथ धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं। पुण्य के लिए उनके नाम पर लोगों से दान मिल सकता है। वे बोहदपुरा में बिना सरकारी प्रयास के गौशाला बनावा रहे है। जिसमें रखे जाने वाले गौ वंश के पर्याप्त चारापानी के लिए उन्होंने दान दताओं की सूची तैयार की है। डकोर में भी इसी तरह के प्रयास से राघवेंद्र सिंह यादव भाईजी 100 से अधिक गायों का संरक्षण कर रहे हैं।

कृषि विकास भी थमा

उप निदेशक कृषि अनिल पाठक के मुताबिक अन्ना प्रथा के कारण जिले में कृषि के विकास को गहरा धक्का पहुंच रहा है। अन्ना पशुओं के भय की वजह से लोग सब्जी व अन्य खेती करने से डरते हैं। रबी के सीजन के बाद इसी खतरे के चलते खेत खाली पड़े रहते हैं जबकि जिले में सिंचाई के इतने संसाधन हो चुके हैं कि यहां बारहामासी खेती बहुत आसान हो गई है।

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