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पुलिस की सख्ती के बाद अपराधियों की शरणस्थली बनी जेल

आजमगढ़, 23 जनवरी (हि.स.)। मंडल कारागार में तैनात बंदीरक्षक की कारागार परिसर में स्थित उसके आवास पर ताबड़तोड़ गोली मारकर गंभीर रूप से घायल करने के मामले ने एक साथ अनेक सवाल खड़ा कर दिया है। यह भी साबित हो गया कि प्रदेश में अब पुलिस से खौफ खाये बदमाशों की जेल ही सुरक्षित ठीकाना बना हुआ है।

यहां भी अपराधियों की मनमानी करने से रोकने पर जेल के अधिकारियों और कर्मचारियों की जान खतरे में पड़ गयी है। इस घटना ने एक बार फिर 2005 में जेलर की हत्या की यादें ताजा कर दी। 

योगी सरकार की चेतावनी और की सख्ती के आगे अब जेल ही अपराधियों के लिए अपराध और ऐशो आराम का ठीकाना बन चुकी है। जेल में बंद अपराधी जितना बड़ा होता है, उसकी दबंगई उतनी चलती है। जेल में रहकर भी ये अपना गैंग चलाते हैं। मनचाही बैरक, लजीज भोजन, सिगरेट-शराब और मोबाइल के लिए अपराधी हर महीने मोटी रकम खर्च करते हैं, यही नहीं दरबार में बैठने वाले शागिर्दों की ड्यूटी भी इनकी मर्जी पर लगाई जाती है। यहीं नहीं अब जेल में बंद अपराधी सोशल साइटो पर भी सक्रिय रहते हैं। समय-समय जेल में औचक निरीक्षण के दौरान इसकी पोल खुलती रहती है। 

जेल में बंद शातिर अपराधियों को प्रतिबंधित सामग्री न मिलने पर सोमवार की रात बदमाशों ने जेल परिसर में बने आवास पर बंदीरक्षक मानसिंह यादव को गोली मारकर घायल कर दिया और फरार हो गये। इससे पहले वर्ष 2005 में शहर के बीचो बीच स्थित अग्रसेन चौराहे के समीप स्थित पुराने मंडल कारागार में जेलर दीप सागर की सख्ती से तिलमिलाएं अपराधियों ने अल सुबह उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद जेल के कर्मी की खौफजदा हो गये थे। ठीक उसी तरह इस बार भी अपराधियों ने बंदीरक्षक को घायल कर जेलकर्मियों को यह मैसेज देने की कोशिश कर रहें है कि उनकी शरणस्थली बन चुके जेल में अगर सख्ती की गयी तो अंजाम ठीक नहीं होगा। 

पुराने मंडल कारागार में ही 26 मई 2015 में पुलिस और जिला प्रशासन के औचक छापेमारी में जेल परिसर से करीब पांच दर्जन मोबाइल मिले थे। इसके अतिरिक्त अन्य छापेमारीयों में मोबाइल, माचिस, सिगरेट के साथ अन्य आपत्ति जनक सामाग्री मिलना आम बात थी। 
वर्ष 2016 में करीब 122 करोड़ की लागत से 1244 कैदियों की क्षमता वाली नयी हाईटेक जेल बनकर तैयार हुई। जेल की चाहदीवारी करीब 30 फुट, आधा दर्जन निगरानी टावर और सीसी टीवी कैमरे से लैस थी। दावा किया जा रहा था कि जेल से न तो कैदी फरार हो सकते और न ही पुरानी जेल की तरह हमेशा आपत्ति जनक सामाग्री बरामद नहीं होगी। 

8 मई 2016 को पुराने मंडल कारागार से हाईटेक मंडल कारागार में कैदियों को शिफ्ट कर दिया गया। लेकिन महज चार महिने के अन्दर ही 19 अगस्त 2016 को हाईटेक जेल के सारे दावों को धता बतातें हुए हत्या के आरोप में बंद गाजीपुर जिले के रहने वाले तीन शातिर कैदी चन्द्रशेख, सुबाष व जितेन्द्र फरार हो गये जो आजतक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े। इसके बाद हाईटेक जेल की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा तो जेल की सुरक्षा को नये सिरे से अपग्रेड किया गया। जिसमें सीसीटीवी कैमरों की संख्या को बढ़ाने और पूरे जेल परिसर में जैमर लगाना शामिल था। सीसीटीवी तो लग गये लेकिन बजट आंवटन के बाद भी जैमर आतजक नहीं लगा। जून 2017 में औचक निरीक्षण में इस हाईटेक जेल से दर्जनों मोबाइल बरामद हुआ तो इसका इस तरह की बारामदगी का सिलसिल इस हाईटेक जेल से भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। 

प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद पुलिस का मनोबल बढ़ा तो ताबड़तोड़ मुठभेड़ का दौर शुरू हो गया। जिले के पुलिस अधीक्षक अजय कुमार साहनी के ताबड़तोड़ मुठभेड़ के बाद तो मंडल कारागार से कई अपराधी अपनी जमानत तक नहीं करा रहे है। इसका खुलासा नवम्बर 2017 में जिला जज के मासिक निरीक्षण में हुआ। तो इसी वर्ष जिले के एक शातिर अपराधी को इस कदर पुलिस का भय सताया कि उसने बाराबंकी जिले के एक दारोगा से सेटिंग कर जेल में चला गया। जिसकी जांच चल रही है।

सरकार के अपराध मुक्त प्रदेश बनाने के लिए जब पुलिस अपने पूरे फार्म में है तो अपराधियों के लिए जेल ही उनका सबसे सुरक्षित ठीकाना बनता चला जा रहा है। और अब धीरे-धीरे जब जेल पर भी सख्ती की जा रही है तो अपराधी तिलमिला गये है जिसका नतीजा है कि अब जेल कर्मीयों की जान पर खतरा मंडराने लगा है। 

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