प्रिंस हैरी और मेगन के बाद लोगों में जगी उम्मीद
लंदन (ईएमएस)। ब्रिटिश राजघराने के प्रिंस हैरी और मेगन की शादी से ब्रिटेन में रहने वाले अफ्रीकन-अमेरिकन (ब्लैक) लोगों का हौसला बढ़ा है। उन्हें लगने लगा है कि ब्रिटेन अब पुरानी सोच को पीछे छोड़ते हुए उन्हें गले लगा रहा है। रंग और जात का भेद खत्म हो रहा है। प्रिंस हैरी (वाइट) और मेगन (ग्रे/ब्लैक) की होने वाली संतान चाहे जैसी हो,इतना तय है कि वह राजपरिवार का हिस्सा होगी। भविष्य में ब्रिटिश राजघराने में रंग और जात के भेद को पूरी तरह खत्म होने का यह सबसे बड़ा उदाहरण होगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार लंदन में रहने वाली 11 साल की एक ब्लैक लड़की शेहो लेंगोलो हाल ही में ब्रिटिश राजपरिवार की नई भक्त बन गई है। उसमें यह बदलाव प्रिंस हैरी और मेगन की शादी के बाद से आया है। शेहो की तरह लंदन में रहने वाले ज्यादातर ब्लैक यही सोच रहे हैं। हालांकि कुछ लोगों का यह कहना है कि खून और रंग को लेकर ब्रिटिश राजघराने के लोगों की सनक हमेशा रही है। यूरोप के रॉयल परिवार के लोगों के लिए हमेशा से उन्हीं के क्लास,रंग और धर्म की पत्नियां या पति खोजे जाते रहे हैं। रॉयल कपल्स की ये जिम्मेदारी रही है कि वे गोरे को ही जन्म दें। जब-जब ऐसा नहीं हुआ तो उन पर कई कलंक लगाए गए।
2009 में डिजनी ने ‘द प्रिंसेज ऐंड द फ्रॉग’ स्टोरी बनाई, जिसमें महारानी टियाना को ब्लैक दिखाया गया। इस स्टोरी का काफी विरोध हुआ। राजपरिवार के लोगों ने कहा, प्रिंसेज को नीली आंखों वाली सुंदरी होना चाहिए। कई इतिहासकारों का दावा है कि 400 या 500 साल पहले ही रॉयल खून में ब्लैक रंग मिल चुका है,इसलिए शुद्ध’ खून का दावा नहीं करना चाहिए। पिछले साल सितंबर महीने में यूरोप में एक फिल्म रिलीज हुई। इस फिल्म का नाम ‘विक्टोरिया ऐंड अब्दुल’ था। ये एक सच्ची कहानी थी, जिसमें पहली बार 1887 में ब्रिटिश राजघराने में किसी शख्स की एंट्री होती है जो गोरा नहीं था। अब्दुल करीम भारतीय थे और उनका रंग भूरा था।
अब्दुल को ब्रिटिश राजघराने में मेहमानों का खाना बनाने के लिए भेजा गया था। उस वक्त अब्दुल की उम्र 24 थी और विक्टोरिया 68 साल की थीं। बढ़ते वक्त के साथ विक्टोरिया अब्दुल के करीब आ गई थीं। अब्दुल महारानी के सेक्रेटरी भी बन गए। राजपरिवार के बाकी लोगों और अधिकारियों को यह पसंद नहीं आ रहा था। राज-दरबार ने कई बार अब्दुल को हटाने की कोशिश की, लेकिन महारानी के रहते कोई अब्दुल को हटा नहीं पाया। उल्टा उन्होंने अब्दुल को अपनी पत्नी को ब्रिटेन लाने की इजाजत दी। इसके साथ ही रहने के लिए तीन घर दिए। लेकिन वक्त अचानक से बदल गया। 1897 के बाद महारानी की मौत हो गई। इसके बाद नए राजा इडवार्ड ने अब्दुल को राजघराने से निकाल दिया। महारानी की ओर से अब्दुल को दिए गए सारे पत्र और ममेंटो भी छीन लिए गए। अब्दुल को भारत आना पड़ा।