जोधपुर (ईएमएस)। साल 2013 में नाबालिग दलित युवती से रेप के मामले में जोधपुर की विशेष अदालत ने आसाराम को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। बुधवार को जोधपुर सेंट्रल जेल में लगी एससी-एसटी कोर्ट के विशेष जज मधुसूदनशर्मा की अदालत ने बुधवार को इस मामले में सहअभियुक्त शिल्पी और शरतचंद्र को 20-20 साल कैद की सजा सुनाई, जबकि अन्य दो प्रकाश और शिव को रिहा कर दिया। आसाराम को रियायत देने से इनकार करते हुए जज मधुसूदन शर्मा ने कहा कि उनका अपराध घिनौना है और उन्हें मौत तक जेल में रहना होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक फैसला सुनते ही आसाराम फूट-फूटकर रोने लगा और अपनी पगड़ी उतार दी।
वह करीब 10 मिनट तक कुर्सी पर बैठा रहा। इसके पूर्व बुधवार की सुबह अदालत ने पॉक्सो और एससी-एसटी एक्ट सहित 14 धाराओं में आसाराम को दोषी करार दिया। आसाराम के वकीलों ने सजा कम करवाने के लिए तमाम दलीलें दीं,लेकिन वह काम न आईं। एससी-एसटी कोर्ट के विशेष जज मधुसूदन शर्मा की अदालत में आसाराम के वकीलों ने कहा कि उनके मुवक्किल को कम से कम सजा दी जानी चाहिए, क्योंकि उनकी उम्र अधिक है।
बात दे कि 2013 से न्यायिक हिरासत में जेल में बंद आसाराम की आयु फिलहाल 78 वर्ष के करीब है। अपराध के दौरान उनकी आयु 74 वर्ष थी। पेशी के दौरान उनके वकीलों का कहना था कि आसाराम की आयु काफी अधिक है और इसके मद्देनजर उन्हें 10 वर्ष से कम की सजा दी जानी चाहिए। हालांकि पीड़िता के वकीलों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए आसाराम को कड़ी से कड़ी सजा जाए।
लंच के बाद दोबारा शुरू हुई अदालत की कार्यवाही में विशेष जज मधुसूदन शर्मा ने तमाम दलीलों को सुनने के बाद आसाराम का आजीवन कैद की सजा सुनाई। इसके साथ ही दोषी करार दिए गए शिल्पी और शरतचंद्र को 20-20 की सजा सुनाई गई। बता दें कि छात्रावास की वार्डन शिल्पी पर इलाज के लिए छात्रा को प्रेरित कर आसाराम के पास भेजती थी। वहीं आसाराम के गुरुकुल के संचालक शरतचंद्र पर आरोप है कि उसने छात्रा की बीमारी का इलाज नहीं कराया। उसने छात्रा के परिजनों को भ्रमित किया कि छात्रा का इलाज सिर्फ आसाराम ही कर सकते हैं। 2013 में मप्र के इंदौर के आसाराम बाबू के आश्रम से पुलिस ने हिरासत में लिया था।