दिवालिया बिल्डर की संपत्ति में घर खरीदारों को भी मिलेगा हिस्सा
नई दिल्ली (ईएमएस)। घर खरीदने वालों का बिल्डर अगर दीवालिया हो जाता है, तो उनके पैसे पूरी तरह से नही डूबेंगे। दिवालिया होने की स्थिति में बिल्डर की संपत्ति बेचे जाने से मिली राशि में उन घर खरीदारों का भी हिस्सा होगा, जिन्हें घर नहीं मिला है। इसके लिए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्शी कोड में जरूरी बदलाव किया जा रहा है। इन्साल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड में बदलाव के लिए बनी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर बदलाव किया जाएगा। बैंकरप्सी कोड में बदलाव के लिए कमेटी ने सिफारिश की है कि दिवालिया बिल्डर की संपत्ति बेचने पर उन घर खरीदारों को भी हिस्सा दिया जाए जिन्हें अब तक घर का स्वामित्व नहीं मिला है। उनको कितना हिस्सा दिया जाए, यह उस बिल्डर के कर्ज पर निर्भर करता है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कमिटी का मानना है कि बिल्डर के दिवालिया होने पर उन घर खरीददारों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता, जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। इससे तो उनके सारे पैसे डूब जाएंगे और उन्हें घर भी नहीं मिलेगा।
गौरतलब है कि मौजूदा कानून के तहत अगर कोई बिल्डर दिवालिया हो जाता है तो उसकी संपत्ति पर पहला अधिकार बैंकों का होगा, जिससे उनसे कर्ज ले रखा है। बैंकों को उनकी सम्पत्ति को अपने अधिकार में लेकर बेचने और उससे जुटाये गए धन को कर्ज के एवज में लेने का अधिकार होगा। कमिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कहा है कि दिवालिया होने पर बिल्डर या बिल्डर कंपनी की सम्पत्ति बेचने पर जितना धन मिलेगा, उसमें कितना फीसदी घर खरीददारों को दिया जाए, इस बात का फैसला कई पैमानों पर तय किया जा सकता है।
सबसे पहले यह देखा जाए कि बिल्डर पर कितना पैसा बकाया है। कितने घर खरीददारों को घर का स्वामित्व नहीं मिला है और उनकी कितनी देनदारी है। यह देखा जाए कि कितने का लोन बिल्डर पर बकाया है। इसके बाद यह तय किया जाए कि सम्पत्ति बेचने के बाद उससे प्राप्त धन में कितनी हिस्सा घर खरीददारों को दिया जा सकता है। इसके लिए बैंकों और अन्य एक्सपर्ट से बात करके अंतिम फैसला लिया जा सकता है। वित्त मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि ऐसे मामले सामने आए हैं कि कई बिल्डर कंपनियों ने आवासीय परियोजना के लिए प्राप्त धन को अपनी किसी अन्य कंपनी में लगा दिया।
इससे प्रॉजेक्ट में देरी हुई और उसके पास धन की कमी हो गई। ऐसे में घर खरीददारों को घर पाने के लिए लंबे समय से इंतजार करना पड़ रहा है। सरकार ने इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड के तहत ऐसे में मामलों को सुलझाने के लिए तीन मापदंड तय किए हैं। पहले कंपनी से बात किया जाए और उसे इस समस्या को निपटाने के लिए तय समय दिया जाए। अगर कंपनी बात नहीं करे तो तय समय के बाद उसकी सम्पत्ति अटैच की जाए। अगर कंपनी खुद को दिवालिया घोषित करती है तो उसकी पूरी सम्पत्ति को अटैच कर उसे तुंरत बेच दिया जाए।