दवा कंपनियों ने जीएसटी के नाम पर की 100 करोड़ की चोरी
कानपुर, 02 जनवरी (हि.स.)। जीएसटी और फ्री सैंपल के नाम पर दवा कंपनियों ने पांच महीनों में पब्लिक को तो लूटा ही है, साथ ही सरकार के खजाने में उस कमाई का टैक्स भी जमा नहीं किया। इस प्रकार जीएसटी लागू होने के बाद दवा कंपनियों ने टैक्स इनवाइसिंग के पैटर्न में इस तरह का परिवर्तन किया कि केवल पांच माह में उन्होंने 100 करोड़ रुपये की कर चोरी की।
दवा कंपनियां पहले एक्साइज और वैट दोनों में पंजीकृत होती थीं। एक्साइज के तहत उन्हें 12.5 फीसदी टैक्स देना होता था और वैट में अलग टैक्स लगता था। एक जुलाई, 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद दवा कंपनियों ने टैक्स इनवाइसिंग के पैटर्न में इस तरह का परिवर्तन किया कि केवल पांच माह में उन्होंने 100 करोड़ रुपये की कर चोरी की।
अधिकारियों के मुताबिक फ्री सैंपल बेच कर की गई यह कर चोरी इससे ज्यादा हो सकती है, कम नहीं। टैक्स चोरी के इस खेल को डीजी जीएसटी की कानपुर रीजनल यूनिट के उप निदेशक शलभ कटियार और वरिष्ठ अधीक्षक किरतेश पंडित ने उजागर किया है।
कटियार ने बताया कि अपर महानिदेशक राजेंद्र सिंह के निर्देश पर 40 दवा कंपनियों के खिलाफ व्यापक जांच शुरू की गई है। जांच में सामने आया है कि कुछ को छोड़कर सभी दवा कंपनियों ने टैक्स चोरी का एक जैसा तरीका ही अपनाया है। यानी पूरा खेल सिंडीकेट बनाकर किया गया। दवा कंपनियों ने टैक्स चोरी के खेल को इतने शातिराना तरीके से अंजाम दिया कि इसकी जांच करने वाले अफसर भी समझने में चकरा गए। दरअसल दवा कंपनियों ने जीएसटी लागू होने के बाद डॉक्टरों और मेडिकल स्टोरों पर सैंपल के तौर पर दी जाने वाली सप्लाई रोक दी है।
कंपनियों ने ऐसे किया खेल
कटियार ने बताया कि हर दवा कंपनी में कितनी दवाओं पर कितने फ्री सैंपल होंगे, यह दवाओं और कंपनियों के आधार पर बदलता रहता है। पर दवा कंपनियों ने अपनी टैक्स इनवाइस में फ्री सैंपल पर शून्य मूल्य दर्शाया और कोई टैक्स अदा नहीं किया, लेकिन स्टाकिस्ट के जरिए ये दवाएं बेच दी गईं। इस बिक्री को दर्शाया नहीं गया और उस पर जो टैक्स दिया जाना चाहिए था, वह नहीं दिया गया। बताया कि कंपनियों ने सैंपल के नाम पर निकलने वाली दवाओं पर भी एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) दर्ज कर दिया। जीएसटी से पूर्व दवा के सैंपल पर एक्साइज ड्यूटी लगती थी। यह टैक्स दवा की कीमत में ही शामिल होता था। यह एक्साइज ड्यूटी विभाग में जमा होती थी। चूंकि सैंपल की दवा की कीमत शून्य रखी जाती थी इस वजह से उस पर वैट नहीं लगता था। जीएसटी लागू होने के बाद दवा कंपनियों ने खेल यह किया कि सैंपल की दवा पर भी कीमत लिख दी, लेकिन जब यह दवा कंपनी से बाहर निकली तो उसे सैंपल की दवा दर्शाया गया। कागजों में इसकी कीमत शून्य दिखाई। कीमत शून्य होने की वजह से 12 प्रतिशत जीएसटी जमा नहीं किया गया।