तीन तलाक- विधेयक का प्रारूप और प्रावधान
नई दिल्ली, 28 दिसम्बर (हि.स.)। लोकसभा में आज एक साथ तीन तलाक को गैरकानूनी करार देने वाला विधेयक प्रस्तुत कर दिया गया। इसे मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 नाम दिया गया है। लोकसभा में इस विधेयक को प्रस्तुत करते हुए केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह विधान विवाहित मुस्लिम महिलाओं को लैंगिक न्याय और लैंगिक समानता के वृहत्तर संवैधानिक ध्येयों को सुनिश्चित करेगा।
तीन तलाक के खिलाफ प्रस्तुत विधेयक के अध्याय 2 उपबंध 3 में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी पति द्वारा उसकी पत्नी के लिए, शब्दों में (चाहे वह बोले गए हों या लिखित हों) या इलेक्ट्रॉनिक रूप सहित किसी भी रीति में कहे गए हों, तलाक की उद्घोषणा शून्य व अवैध होगी। इस अध्याय के उपबंध 4 में कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी के लिए धारा 3 में निर्दिष्ट तलाक की उद्घोषणा करता है, उसे तीन वर्ष तक की सजा के साथ ही जुर्माना भी देना होगा। इसी विधेयक के अध्याय 3 की धारा 7 में इस तरह से दिए गए तीन तलाक को संज्ञेय व गैरजमानती अपराध की श्रेणी में भी रखा गया है।
(विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक में प्रावधान किया गया है कि कोई ऐसी विवाहित महिला, जिसके लिए तलाक की उद्घोषणा की गई है, अपने पति से स्वयं उसके लिए और आश्रित बालकों के लिए गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी। यह गुजारा भत्ता सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित किया जाएगा। इतना ही नहीं ऊपर बताए गए किसी भी प्रकार से तलाक दिए जाने की स्थिति में मुस्लिम महिला का अपने अवयस्क बच्चों पर भी हक होगा।
न्यायालय ने शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में 22 अगस्त 2017 को दिए गए फैसले में तलाक-ए-बिद्दत को गैरकानूनी करार दिया। तलाक-ए-बिद्दत यानि एक साथ और एक ही समय में तलाक के उद्घोषणा की प्रथा को मुस्लिम पतियों द्वारा अपनी पत्नियों से विवाह विच्छेद के लिए अपनाया जा रहा था। विधेयक में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से पीढियों से चली आ रही इस स्वेच्छाचारी और बेतुकी पद्धति से भारतीय मुस्लिम महिलाओं को स्वतंत्र कराने का रास्ता मिला।
ंवैधानिक नैतिकता, महिलाओं के सम्मान के साथ ही संविधान द्वारा प्रत्याभूत लैंगिक समानता के सिद्धांत के खिलाफ है। न्यायालय में चल रही बहस के दौरान एक प्रतिवादी के तौर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दलील दी थी कि तलाक-ए-बिद्दत जैसी धार्मिक प्रथाओं को खत्म करना न्यायपालिका का काम नहीं है। इस पर संसद कोई कानून बना सकता है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने न्यायालय में यह भी कहा था कि वह इस कुप्रथा के खिलाफ अपने समुदाय के लोगों को परामर्श देने का काम करेगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आश्वासन के बावजूद देश में एक साथ तीन तलाक की घटनाएं बढ़ने की रिपोर्ट प्राप्त हुई है। इससे साफ है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद भी गैरकानूनी तरीके से तलाक देने बालों में कानून का भय नहीं पैदा हुआ। इसलिए जरूरी था कि राज्य इसमें हस्तक्षेप कर मुस्लिम महिलाओं के हितों को संरक्षण प्रदान करे। इसीलिए यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया है।