टेलीकॉम सेक्टर में छंटनी के बाद 75,000 से ज्यादा लोग बेरोजगार !
मुंबई, 15 नवंबर : पिछले एक साल में दूरसंचार क्षेत्र की कई दिग्गज कंपनियों ने अपने एक चौथाई कर्मचारियों को काम से निकाल दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों ने 75,000 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी कर दिया हैं। ऑपरेटर्स, टॉवर फर्म और वेंडर्स की मदद से ही इन कंपनियों को प्रतिस्पर्धी उद्योग में बने रहने के लिए मजबूती मिलती है। लेकिन इनकी संख्या में भी कमी कर दी गयी है। दूरसंचार उद्योग में कंपनी लागत का 4-5 प्रतिशत हिस्सा मानव बल के लिए उपयोग करती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में वेतन में भी कोई सुधार नहीं हुआ था। कंपनियों की बढ़ती लागत को देखते हुए अब कॉस्ट कटिंग फॉर्मूला अपनाया जा रहा है, जिसकी गाज निचले पायदान के कर्मचारियों पर गिर रही है।
रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के बाद और रिलायंस जियो के कदम रखने से कई टेलीकॉम दिग्गजों की परेशानी बढ़ गई है। इसी तरह छोटे खिलाड़ी भी नकदी प्रवाह व राजस्व की कमी से त्रस्त हो चुके हैं। नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्यमियों को अपनी दुकान व कार्यालय बन्द करने पर विवश कर दिया है। पिछले साल के मुकाबले दूरसंचार से जूड़ी कंपनियों में केवल 75 फीसदी मैनपावर ही रह गई है। स्थायी कर्मचारियों के बदले अस्थायी रूप से ठेके पर कर्मचारियों को रखा जाने लगा है।
मुंबई स्थित एक रिक्रूटमेंट कंसल्टेंट्स के कार्यकारी निदेशक ने बताया कि पिछले दो साल से रिक्रूटमेंट सेक्टर की ग्रोथ बाधित हुई है। केमिकल, फैब्रिक सेगमेंट की कई मध्यम रेंज की कंपनियों की डिमांड में कमी आयी है, जबकि छोटी कंपनियों ने अपने प्लांट को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया है। उन्होंने बताया कि दूरसंचार क्षेत्र में भी कमोबेश यही स्थिति है। लगभग 50 फीसदी कर्मचारी जो हैं, वह मिडल मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं, उनके सामने पिछले एक साल के दौरान बेरोजगार होने का खतरा बढ़ गया है। इनमें से भी कम से कम 25-30 प्रतिशत कर्मियों को दूसरा जॉब ढूंढने को कह दिया गया है। करीब 25,000 कर्मचारी टेलीकॉम उद्योग द्वारा अब तक निकाले जा चुके हैं।
बता दें कि दूरसंचार क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां लगभग 5 लाख करोड़ रुपये के भारी कर्ज से जूझ रही हैं। यह कंपनियां राजस्व में कमी, मुनाफे और मुफ़्त नकदी प्रवाह में तेज गिरावट का भी सामना कर रही हैं। पिछले साल सितंबर में रिलायंस जियो के इस सेक्टर में कदम रखने के बाद से यह समस्या और भी गहरा गई है। टेलीकॉम क्षेत्र की दूसरी बड़ी कंपनी वोडाफोन इंडिया और नंबर तीन पर काबिज आइडिया सेल्युलर को भी खुद को मर्ज करने के लिए विवश होना पड़ा, जबकि भारती एयरटेल ने टाटा टेलीसर्विसेज के वायरलेस बिजनेस को खरीदने की घोषणा की है।
भारती एयरटेल पहले ही टेलीनोर इंडिया को खरीद चुकी है। रिलायंस कम्युनिकेशंस ने अपने वायरलेस बिजनेस को नवंबर के अंत तक प्लग करने का फैसला किया है, जबकि एयरसेल भी कुछ जगहों पर ध्यान केंद्रित करेगी और बाकी के कारोबार को समेटने का निर्णय ले चुकी है। यह समस्या सिर्फ मोबाइल फोन ऑपरेटरों तक ही नहीं है, बल्कि वेंडर सेगमेंट और टॉवर कंपनियों के सामने भी खुद को टिकाए रखने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इस सेक्टर में भी रिक्रूटमेंट के लिए मांग में भारी कमी आई है।