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जब ‘योगी के घर’ चुना गया था ‘किन्नर मेयर’…

गोरखपुर, 01 नवम्बर : पूर्वांचल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तूती बोलती है। यह मुख्यमंत्री बनने के बहुत पहले से चला आ रहा है। कभी हिंदुत्व को लेकर उग्र बयान देना हो या फिर कभी छोटी से घटना पर भी हिन्दू युवा वाहिनी के बुलावे पर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी हो, हर जगह योगी के आने भर से फिजायें बदल जाया करती थीं, लेकिन एक समय ऐसा भी आया था, जब योगी जैसे शेर राजनीतिज्ञ की एक नहीं चली थी और इनके विरोध के बाद भी एक किन्नर ने मेयर पद हथिया लिया था। गोरखपुर की जनता के इस झटके ने कई सवाल खड़े कर दिए थे। किन्नर में चुनाव जीतने के बाद कई राजनैतिक समीकरण बदल गए थे। केवल गोरखपुर ही नहीं, देश की राजनीति में इसकी चर्चाएं आम हो गईं थीं।

भारत की राजनीति में बार-बार नए इतिहास रचने वाली गोरखपुर की जनता ने वर्ष 2001 के नगर निगम चुनाव में एक अलग ही इतिहास रचा था। एक अनजान व्यक्ति को फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया था। तमाम राजनैतिक पार्टियों और दिग्गजों को दर-किनार कर राजनीति के नए समीकरण बना दिये थे। यह उस वक्त हुआ था, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भारतीय जनता पार्टी से सांसद थे। हिन्दू युवा वाहिनी के ताकत भी इनके साथ थी। बावजूद इसके इनकी एक न चली थी और गोरखपुरियों ने एक किन्नर को मेयर चुन लिया था।

वर्ष 2001 के गोरखपुर नगर निगम के चुनाव में यहां की जनता ने तमाम राजनैतिक पार्टियों और दिग्गजों को नकार दिया था। दावेदारों में सिर्फ़ एक पर भरोसा जताया, वह भी किन्नर था। लोगों ने ऐसा इसलिये नहीं किया था कि उन्हें किन्नर चुनने में मजा आया, बल्कि इसलिए किया कि वे तमाम राजनैतिक दलों और राजनेताओं से नाराज थे। पूर्वांचल और गोरखपुर में लगातार विकास का दावा होने के बाद भी विकास ठप्प था। यही वजह थी कि लोगों का भड़का आक्रोश एक किन्नर मेयर के रूप में सामने आया था।

किन्नर उम्मीदवार के खड़ा होने के पीछे किसी समाज विशेष या शरारती तत्वों का हाथ होने का आरोप भले ही लगाया गया। जमकर इसका विरोध किया गया, लेकिन जनता ने वही किया जो उसे अच्छा लगा। स्थानीय नेताओं के साथ बड़े नेताओं को भी एक किन्नर की कतार में लाकर खड़ा कर दिया था। यह बात अलग है किन्नर समाज के लिए महत्वपूर्ण है, फिर भी अभी उपेक्षा का दंश वे झेल ही रहे हैं। शायद यही वजह रही कि लोगों ने एक किन्नर को ही चुनने का फैसला लिया था।

महिलाओं में लिए आरक्षित महापौर की सीट से किन्नर आशा देवी के आने से राजनैतिक पार्टियों में हड़कंप था। सभी उसके विरोध में थे। तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार के रूप में विद्यावती भारती और सपा की उम्मीदवार पूर्व महापौर अंजू चौधरी भी जोर-आजमाइश के लिए मैदान में थे। योगी आदित्यनाथ समेत कई दिग्गजों ने भी प्रचार-प्रसार किया था, बावजूद इसके परिणाम किन्नर उम्मीदवार आशा देवी के पक्ष में आया था। गोरखपुरियों के इस निर्णय ने देश की राजैतिक फिजा को बदल दिया था।

नरसिंहपुर में रहने वाले अमरनाथ उर्फ आशा देवी के महिला-पुरुष होने को उठाकर पार्टियों ने विवाद को हवा देकर हर कीमत पर इनकी प्रत्याशिता रद्द करने की कोशिश की थी, लेकिन इनकी एक न चल पाई थी और अमरनाथ उर्फ आशा देवी ने खुद के महिला होने का प्रमाण दिया था।

चूड़ी चुनाव चिन्ह पर नगर निगम का चुनाव लड़ने वाली किन्नर आशा और फलों का दुकान चलाने वाले अमरनाथ ने खुद को साबित किया था और जनता को विश्वास में लेकर आगे बढ़ने का प्रयास भी किया था। बावजूद इसके वह कुछ ऐसा नहीं कर पाया जिसे जनता बहुत दिनों तक याद कर पाती। लेकिन एक बात तो सच है कि किन्नर मेयर आशा को स्थानीय राजनेताओं ने बहुत ही तंग किया था। विकास कार्यों में रोड़े अटकाए थे। शायद यही वजह रही कि मेयर पद से हटने और राजनीति से सन्यास लेने के बाद आशा ने बहुत ही बुझे मन से कहा था, ”राजनीति की गंदगी में रहने से तो अच्छा था कि मैं किन्नर के रूप में ढोलक और ताली ही बजाती।’‘ (हि.स.)।

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