जमशेदपुर (ईएमएस)। झारखंड के पूर्वी सिंहभूमि जिले के तीन प्रखंडों की अर्थव्यवस्था इस समय ग्रीन गोल्ड यानी बांस से चमक रही है। घाटशिला सब डिवीजन क्षेत्र के इन तीनों ब्लॉकों में 80 हजार से अधिक किसान ग्रीन गोल्ड के कारोबार से जुड़े हैं। टर्नओवर 20 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है। इतना ही नहीं यहां ग्रीन गोल्ड किसानों के लिए एटीएम की तरह काम करते हैं। चाकुलिया,बहरागोड़ा और धालभूमगढ़ ब्लॉकों की पहचान झारखंड में ग्रीन गोल्ड के कारण ही है। यहां से झारखंड के जिलों के अलावा उत्तरप्रदेश,मप्र ,राजस्थान,हरियाणा,छत्तीसगढ़ और पंजाब तक बांस की आपूर्ति होती है।
उत्पादन तीनों ब्लॉकों में होता है,लेकिन इसका डिपो चाकुलिया में स्थित है। यहां प्रत्येक दिन 10 ट्रक बांस लोड होता है। एक ट्रक बांस की कीमत करीब 50 हजार होती है। हर माह 300-400 ट्रक लोड होता हैं। इस तरह लगभग दो करोड़ रुपये का टर्नओवर है। अमूमन एक बांस की कीमत 60 रुपये से लेकर 80 रुपये तक होती है।
चूंकि यहां का बांस देश में मशहूर है, इस कारण उत्पादन के अनुरूप मांग भी अधिक है। अब यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुका है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि फसल लगाने के बाद खाद-पानी डालने की जरूरत नहीं पड़ती है। पांच साल में यह आसानी से तैयार हो जाता है। किसी भी तरह की जमीन पर यह आसानी से उग जाता है। आलम यह है कि कारोबारी किसानों को अग्रिम भुगतान तक कर देते हैं। बरसात के मौसम में इस लगाया जाता है। यह रोजगार देने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है। किसान इस ग्रीन गोल्ड को नगदी फसल मानते हैं।
केंद्र सरकार द्वारा गैर वनक्षेत्र में उगने वाले बांस को पेड़ नहीं मानने संबंधी अध्यादेश जारी किए जाने के बाद इसके कारोबार में और बढ़ोतरी हुई है। केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 1927 के भारतीय वन कानून में पेड़ की परिभाषा से बांस का उल्लेख हटा दिया गया। इसके अब बांस को काटने और देश के किसी भी भाग में ले जाने के लिए सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं है। वित्तीय वर्ष 2018-19 का केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बांस को ग्रीन गोल्ड का नाम दिया। इसके बाद से इन प्रखंडों के लोग इसे बांस की जगह ग्रीन गोल्ड ही कहकर पुकारते हैं। ग्रीन गोल्ड के उत्पादन और कारोबार में इन तीनों ब्लॉकों ने देश में धाक जमा ली है।