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कैराना इफेक्ट: मुसलमानों की एकजुटता से बदल सकती है पश्चिमी यूपी की सियासत

मेरठ (ईएमएस)। पिछले दिनों कैराना और नूरपुर में उपचुनाव में केंद्र और राज्‍य में सत्‍तारूढ़ बीजेपी को करारी शिकस्‍त का सामना करना पड़ा। सीएम योगी आदित्‍यनाथ और तमाम बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार के बावजूद दोनों ही जगहों पर एकजुट विपक्ष के उम्‍मीदवार बीजेपी के प्रत्‍याशियों पर भारी पड़े। मुस्लिम बहुल इन दोनों ही जगहों पर अल्‍पसंख्‍यक वोटों ने विपक्ष की इस जीत में निर्णायक भूमिका निभाई, जिसका असर आने वाले समय में पूरे पश्चिमी यूपी में देखने को मिल सकता है। राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक कैराना और नूरपुर में विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा, जिसका असर यह हुआ कि मुस्लिम मतों का बंटवारा नहीं हुआ। इसी वजह से महागठबंधन के उम्‍मीदवार बीजेपी के प्रत्‍याशियों को हराने में सफल रहे। इससे पहले एसपी, बीएसपी, कांग्रेस और आरएलडी में मुसलमान वोट बंट जाते थे, जिसका फायदा सीधा बीजेपी को मिलता था। कैराना और नूरपुर के चुनाव परिणाम ने विपक्ष को यह संदेश दे दिया है कि मुस्लिम वोटों का बिखराव रोकने के लिए उन्‍हें एकजुट होकर चुनाव लड़ना होगा।

चुनावी विशेषज्ञों की मानें तो वेस्ट यूपी की करीब 35 प्रतिशत सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक भूमिका में हैं। वेस्ट यूपी के 26 जिलों में फैली हुईं 140 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों की अच्छी-खासी मौजूदगी है। यूपी की कुल जनसंख्या में मुस्लिमों की आबादी करीब 19 फीसदी है। शहरी इलाकों में उनकी मौजूदगी करीब 32 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 16 फीसदी है। यूपी में लोकसभा की 13 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी या उससे ज्यादा है। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर में 40 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं। रामपुर में 50 फीसदी से ज्‍यादा मुस्लिम मतदाता हैं। कैराना में 35 फीसदी, मेरठ में 30, बागपत और गाजियाबाद में 25 प्रतिशत से ज्‍यादा मुसलमान हैं। नगीना और बरेली ऐसे जिले है, जहां एक तिहाई आबादी मुसलमानों की है। संभल में 70 फीसदी हैं। गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर में यह संख्‍या बीस फीसदी से कम है। ऐसे में अगर विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़ता है, तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं होगा और इसका सीधा नुकसान बीजेपी को होगा। बीजेपी ने मुस्लिमों के बिखराव के दौर में उन्‍हें कभी सियासी महत्व नहीं दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में एक भी मुस्लिम को टिकट बीजेपी की तरफ से नहीं दिया गया। बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भी इसी सिलसिले को जारी रखा। यूपी में एक भी मुस्लिम को चुनाव मैदान में नहीं उतारा।

हालांकि सरकार बनने पर कोटा पूरा करने लिए मोहसिन रजा को मंत्री बना दिया। निकाय चुनाव में भी मुस्लिम बाहुल्य ज्यादातर इलाकों में बीजेपी ने अपने प्रत्याशी नहीं उतरे थे। कुछ जगह लोकल समीकरण को ध्‍यान में रखते हुए उसने गिनती के प्रत्याशी बनाए थे। बदली परिस्थितियों में मुस्लिमों को समझाने के लिए बीजेपी अपने संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को यूपी में लगाने जा रही है। यूपी में अब तक मुस्लिम जन प्रतिनिधियों का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 1991 में 17 मुस्लिम विधायक जीते, जिनमें कांग्रेस तीन, बीएसपी एक और अन्य 13 थे। 1993 में कुल 28 मुस्लिम विधायक जीते। जिनमें एसपी के 11, बीएसपी के 10, कांग्रेस के दो। 1996 में कुल 38 मुस्लिम विधायक बने, एसपी के 19, बीएसपी के 13, कांग्रेस के तीन। 2002 में कुल 46 मुस्लिम विधायक बने, एसपी के 24, बीएसपी के 13, कांग्रेस के चार। 2007 में कुल 56 मुस्लिम विधायक बने। इसमें एसपी के 21, बीएसपी के 29 विधायक थे। 2012 में कुल 70 मुस्लिम विधायक बने जिनमें एसपी के 43, बीएसपी के 13, कांग्रेस के पांच शामिल हैं। 2017 में मुस्लिम वोट बुरी तरह बंट गया। इस साल गिनती के ही मुस्लिम विधायक जीत सके। गत लोकसभा चुनाव में 73 सांसद बीजेपी और उसकी सहयोगी अपना दल के बने थे। इसके अलावा पांच एसपी और दो कांग्रेस के सांसद चुने गए थे। इनमें एक भी मुस्लिम सांसद नहीं था। कैराना उपचुनाव जीतने वाली तबस्सुम हसन वर्तमान में यूपी से एकमात्र मुस्लिम सांसद हैं।

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