किसान और जवान भारतीय जीवन के केन्द्र बिन्दु : राष्ट्रपति
कानपुर, 14 फरवरी (हि.स.)। किसान खेतों पर पसीना बहाकर देश को भोजन उपलब्ध कराता है। इसीलिए आजादी के दौरान महात्मा गांधी ने उन्हें अन्नदाता की संज्ञा दी थी। इसी तरह जवान भी सरहद पर गोलियां खाकर देश की रक्षा कर रहा है। किसान और जवान की भूमिका एक जैसी है। किसान और जवान भारतीय जीवन के केन्द्र बिन्दु हैं। इन दिनों सरकारें किसानों और जवानों के लिए बेहतर कार्य कर रही हैं। यह बातें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने शहर कानपुर में कहीं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बुधवार चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) पहुंचे। यहां पर उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए और फिर कैलाश भवन सभागार में सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चरल प्रोफेशनल्स की ओर से आयोजित ‘बदलते जलवायु में छोटे किसानों की टिकाऊ खेती’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन किया। इस सेमिनार में जापान, नेपाल, भूटान आदि देशों के छह सौ प्रतिनिधियों और 15 कृषि वैज्ञानिकों ने भाग लिया। विश्वविद्यालय में राष्ट्रपति का स्वागत कुलपति डॉ. सुशील सोलोमन और सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चरल प्रोफेशनल्स के अध्यक्ष डॉ. एके सिंह ने किया।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि आज जवान देश के लिए कुर्बानी दे रहा है और किसान खेतों पर पसीना बहा रहा है। दोनों की भूमिका कहीं से अलग नहीं है। क्षेत्र और काम अलग हो सकते हैं, लेकिन दोनों का उद्देश्य एक ही है। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि गांधी जी ने किसानों को अन्नदाता की संज्ञा दी थी। आज किसान राष्ट्र निर्माता की भूमिका में है। उसे अहसास कराए जाने की जरूरत है। इसी तरह बार्डर पर जवान देश की रक्षा के लिए गोलियां खा रहा है। दोनों भारतीय जीवन के केन्द्र बिन्दु हैं।
राष्ट्रगान से कार्यक्रम की हुई शुरुआत
अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र की शुरुआत और समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। सीएसए के कुलपति डॉ. सुशील सोलोमन के स्वागत भाषण के बाद डॉ. एके सिंह सेमिनार के बारे में जानकारी दी। मंच पर राष्ट्रपति के साथ राज्यपाल राम नाईक भी मौजूद रहे। कृषि राज्यमंत्री और कृषि मंत्री के बाद राज्यपाल राम नाईक ने भी किसानों को अपना संदेश दिया। इसके बाद राष्ट्रपति ने कृषि वैज्ञानिक और किसानों को अपना संदेश दिया।
राष्ट्रपति ने कृषि प्रदर्शनी का किया उद्घाटन
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सीएसए परिसर में ही कृषि प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। प्रदर्शनी में आठ स्टॉल लगाए गए थे। इसमें विश्वविद्यालय के अलावा कृषि विज्ञान केंद्र, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के साथ चार निजी कंपनियों के स्टॉल रहे। विश्वविद्यालय व अन्य संस्थानों स्टालों के माध्यम से अपनी उपलब्धि और नई तकनीकी के बारे में जानकारी दी गई।
60 फीसदी खेती वर्षा पर निर्भर
राष्ट्रपति ने कहा कि देश में सबसे ज्यादा लघु और सीमांत किसान हैं, इन्हे संरक्षण देने की जरूरत है। कहा कि देश में 60 फीसदी खेती वर्षा पर निर्भर है। वैज्ञानिकों को चाहिये कि इस दिशा पर ठोस कदम उठाएं और सरकार को इनके उत्थान के लिए सलाह दें।
राष्ट्रपति ने कहा अनाज उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन खाद्यान्न को बचाना बड़ी चुनौती है। फूड प्रोसेसिंग की दिशा में काम करने की जरूरत है। आज मेगा फूड पार्क स्थापित किए जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि छोटे-छोटे फूड कलस्टर स्थापित किए जाएं, ताकि किसान आसानी से अपना उत्पाद पहुंचा सकें। किसानों के लिए मार्केट, भंडारण की व्यापक व्यवस्था की जानी चाहिए। महिलाओं को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए। कई राज्यों में खेती में महिलाएं अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। बस उन्हें खेती के फायदे और प्रोत्साहन की जरूरत है। राष्ट्रपति ने हरियाणा के किसानों का भी उल्लेख किया कहा कि हरियाणा के कुछ किसान वैज्ञानिकों के सहयोग से कृषि के अपशिष्ट से गोबर खाद्य तैयार कर रहें हैं।
मोटा अनाज हो रहा गायब
राष्ट्रपति ने कहा कि आज मैं देख रहा हूं कि अपना परंपरागत भोजन यानि मोटा भोजन जैसे बाजरा, मक्का आदि गायब होता जा रहा है। हम लोगा आयातित भोजन पर अधिक जोर दे रहे हैं। जिसके चलते बीमारियां अधिक हो रही हैं। हमे इस विषय पर सोचना होगा और बीमारियों से बचने के लिए अपने परंपरागत भोजन की ओर लौटना चाहिये। कहा कि किसानों को चाहिये कि आपसी सामंजस्य से फसलों की पैदावार करें, जिससे आय दोगुना होने का काम आसान हो जाएगा।
क्या यहां पत्थर की होती है पढ़ाई
सीएसए में बोलते हुए राष्ट्रपति ने लोगों को अहसास भी कराया कि यह शहर भी मेरा है और शहर के लोग भी मेरे। उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से पहले हम इसे पत्थर कॉलेज के नाम से जानते थे। मेरे मन में कई बार यह सवाल आया कि क्या यहां पत्थर की पढ़ाई होती है। बाद में मुझे बताया गया कि इसका गेट पत्थर से बना है तो लोग इसे पत्थर कॉलेज कहने लगे।
पुरानी यादों को किया ताजा
राष्ट्रपति ने अपनेपन का अहसास कराते हुए कहा कि हम इसी कैंपस से कई बार पैदल गुजरें हैं। मुझे याद है कि पहले रावतपुर से एक रास्ता हुआ करता था। हमें जब एसडी कॉलेज या फिर नवाबगंज, आजादनगर की ओर जाना होता था, तो इसी रास्ते का इस्तेमाल करते थे। इस कॉलेज से निकले कई वैज्ञानिकों ने देश और दुनिया में कानपुर का नाम रोशन किया है। उन्होंने पदमश्री आरबी सिंह, डॉ. अख्तर हुसैन का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि कानपुर मेरी जन्म और कर्मभूमि है। यहां की यादें अभी भी मेरे जेहन में ताजा है। राष्ट्रपति ने बताया कि बीएनएसडी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव देखने वीएसएसडी कॉलेज आते थे। यहां भजन सुनने नहीं बल्कि पंजीरी और चरणामृत के लिए आते थे। कोशिश यही होती थी कि दो-तीन बार प्रसाद मिल जाए तो अच्छा रहेगा।