किताबों से दूर हैं सरकारी स्कूलों के आधे बच्चे
कानपुर, 19 अगस्त (हि.स.)। शैक्षणिक सत्र शुरू हुए करीब छह माह होने जा रहें है पर अभी भी आधे से ज्यादा सरकारी स्कूल के बच्चे किताबों से दूर हैं, जिसके चलते अध्यापक मौखिक ही पढ़ा रहे हैं और बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है।
प्रदेश सरकार लगातार सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने पर जोर दे रही है। मगर, अभी हकीकत बहुत खराब है।
कक्षा दो से चार तक के बच्चे सही से हिंदी भी नहीं पढ़ पा रहे हैं। जब जिम्मेदार अध्यापकों से पूछा गया तो पता चला शासन की तरफ से भेजी जाने वाली किताबें ही अभी तक बच्चों को नहीं मिल पाई हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जनपद के करीब आधे सरकारी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंच पाई हैं। इस बात को सीडीओ अरूण कुमार ने भी स्वीकारा। बताया कि मैं करीब पांच दर्जन स्कूलों का निरीक्षण कर चुका हूं, जिनमें ज्यादातर स्कूलों के अध्यापकों ने किताबें न आने का दुखड़ा सुनाया।
सीडीओ ने कहा कि इस पर बीएसए को पत्र भी लिखा गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि प्राइमरी पाठशाला मगरासा में कक्षा एक के छात्र-छात्राओं का हिंदी का अक्षर ज्ञान काफी खराब है। कक्षा दो से चार तक के बच्चे हिंदी नहीं पढ़ पा रहे थे तो पांचवीं के छात्र अंग्रेजी नहीं पढ़ सके। प्राइमरी पाठशाला जामू में कक्षा के एक के छात्र न अंक पहचान सके, ना ही अक्षर। पांचवीं के बच्चे भी अंग्रेजी और हिंदी में कमजोर थे। यहां के छात्रों को तो अब तक ड्रेस भी नहीं मिली है। यही हाल जूनियर हाईस्कूल रमईपुर का भी है जहां पर बच्चे किताबें व ड्रेस का इंतजार कर रहें हैं।
उधर बीएसए जय सिंह का कहना है कि प्रिंटिग प्रेस किताबें छापने में देरी कर रहें हैं। जनपद में जितनी किताबों की मांग की गई थी उतनी अभी नहीं आ पाई हैं। जल्द ही किताबें आ जाएंगी और बच्चों को उपलब्ध करा दी जाएंगी। रही बात शिक्षा की गुणवत्ता की तो सभी अध्यापकों को शासन की मंशा से अवगत करा दिया है। निरीक्षण में कमी पाये जाने पर दोषी अध्यापकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।