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कानपुर में मिली क्रांतिकारियों की सुरंग को देखने के लिए उमड़ी भीड़.

कानपुर, 13 जनवरी=  अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले कानपुर के क्रांतिकारियों ने जिन सुरंगों को अपना हथियार बनाया था वह शुक्रवार को उर्सला अस्पताल में खुदाई के दौरान प्रकाश में आ गई। हालांकि जिम्मेदार अधिकारी अभी इसे जांच का विषय बताकर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। पर इतिहासविद् इसे क्रांतिकारियों की सुरंग होने से भी इंकार नहीं कर रहे हैं।

उर्सला अस्पताल परिसर में गुरुवार को शाम जेसीबी मशीन से नाली निर्माण के लिए खुदाई चल रही थी। उसी दौरान रैन बसेरा के पास अचानक मिट्टी नीचे धंसने लगी। यह देख मशीन चालक ने काम रोका और नगर निगम के सुपरवाइजर मनोज कुमार को सूचना दी। कुमार ने काम को रोक आलाधिकारियों को जानकारी दी। कुमार के मुताबिक यह गड्ढा 20 फिट गहरा है फिर अस्पताल की तरफ चौड़ा रास्ते के रूप में तब्दील है। यही नहीं गड्ढे से लेकर अंदर जाने वाला रास्ता ईंटों से पूरी तरह मजबूत बना हुआ है। जिससे स्पष्ट है कि यह किसी जमाने की सुरंग है।

शुक्रवार को सीमओ डा. आर.पी. यादव, सीएमएस डा. संजीव कुमार सहित सिविल व इलेक्ट्रिकल जूनियर इंजीनियर ने मौके पर पहुंचकर निरीक्षण किया। सीएमएस ने बताया कि पुरातत्व विभाग को बुलाया गया है। इसके साथ ही यह भी कहा कि जिस तरह गड्ढे का आकार है उससे यह कयास लगाया जा सकता है कि करीब दो सौ वर्ष पूर्व की सुरंग होगी। सुरंग की जानकारी शहर में आग की तरह फैल गई। देखते ही देखते उर्सला अस्पताल में आने वाले तीमारदारों के साथ लोगों की भीड़ भी सुरंग देखने पहुंच गए। जिसे स्थानीय पुलिस द्वारा हटाया गया।

इतिहासविद् का कहना

डा. मनोज अग्रवाल ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय कानपुर क्रांतिकारियों का गढ़ रहा है। जिस जगह सुरंग रूपी गड्ढा मिला है वह क्रांतिकारियों की गतिविधियों के केन्द्र फूलबाग, नानाराव पार्क के नजदीक है। यहां से लेकर बिठूर तक सुरंग होने की बात कई दस्तावेज में सामने आई है। इसी सुरंग का प्रयोग अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में क्रांतिकारी करते रहे है। क्रांतिकारियों के दमन के बाद अंग्रेज सरकार ने इन सभी सुरंगों के बंद कर दिया था।

किदवंतियों में भी जिक्र

नवाबगंज के जागेश्वर मंदिर के पुजारी पं. रमेश शुक्ला का कहना है कि कई पीढ़ियों से यह बात प्रचलित है कि मंदिर में पूजा करने के लिए पेशवा नानाराव की लड़की मैना व झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सुरंग से आती थी। मंदिर में इस बात के सबूत भी मिले है जिसको प्रशासन ने साठ के दशक में पूरी तरह से बंद करवा दिया है।

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