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उमा भारती के मनाने पर भी नहीं माने स्वामी सानंद

हरिद्वार, 04 अगस्त (हि.स.)। गंगा की अविरलता और निर्मलता बनाए रखने के लिए पर्यावरणविद् स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ जीडी अग्रवाल आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। जून माह से अनशन कर रहे ज्ञान स्वरूप का अनशन समाप्त कर उन्हें मनाने के लिए करीब दो घंटे केंद्रीय जल एवं संसाधन मंत्री उमा भारती ने उनसे शुक्रवार देर रात बंद कमरे में बातचीत की लेकिन स्वामी की गंगा स्वच्छता के लिए एक्ट की मांग पर बात नहीं बन पाई। नतीजन अभी भी जीडी अग्रवाल अनशन पर बैठे हैं। उनका कहना है कि गंगा पर एक्ट बनने तक उनका अनशन जारी रहेगा।

स्वामी ज्ञान स्वरूप सानन्द का कहना है कि उमा भारती सिर्फ बातें करने आयी थी लेकिन जब तक गंगा हित में एक्ट पास नहीं होता तब तक वो अनशन नहीं तोड़ेंगे। उन्होंने मोदी पर तीखा हमला करते हुए कहा कि यदि एससी एसटी मुद्दे की तरह गंगा के मुद्दे को गंम्भीरता से लिया जाए तो सब कुछ हो सकता है। उन्होंने साफ कहा कि उन्हें नहीं लगता की उनके जीवन काल में ये एक्ट पास होगा।

उमा भारती का कहना है कि अनशन समाप्त करने के लिए जब उन्होंने स्वामी सानंद से कहा गया तो उन्होंने कहा है कि वो एक्ट पास होने के बाद ही अनशन समाप्त करेंगे और ये एक्ट अक्टूबर-नवंबर तक पास होगा। गंगा मंत्रालय से हटाए जाने पर उन्होंने कहा कि भले उन्हें किनारे कर दिया गया हो लेकिन गंगा को कोई किनारे नहीं करना चाहता। उन्होंने कहा कि गंगा को पूरी तरह से अविरल और निर्मल होने में 10 साल लगेंगे ये शुरू से कहती आई हूं। 

गंगा मंत्री नितिन गडकरी को उम्मीद थी कि स्वामी सानन्द का अनशन उमा भारती तुड़वा देंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उमा भारती को भी बैरंग वापस लौटना पड़ा। स्वामी सानंद से वार्ता विफल होने के बाद मीडिया से बात करते हुए उमा ने कहा कि नितिन गडकरी के कहने पर यहां आई हूं। एक्ट बना रखा और मंत्री गड़करी के मुताबिक अगले सत्र में एक्ट पास भी हो जाएगा। गंगा की अविरलता के लिए आईआईटी कंसोर्टियम ने अपनी रिपोर्ट भी पेश कर दी है। 

गौर हो कि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ जीडी अग्रवाल साल 2012 में भी आमरण अनशन पर बैठे थे। बाद में सरकार की ओर से अपनी मांगों पर सहमति मिलने के बाद अनशन समाप्त कर दिया था। इस अनशन के दौरान उनकी हालत बिगड़ गई थी। इंडियन इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रोफेसर अग्रवाल गंगा की सफाई के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित नेशनल गंगा रीवर बेसिन ऑथोरिटी (एनजीआरबीए) के अप्रभावी कामकाज से नाखुश थे। इसके साथ ही वो गंगा पर बांध, बैराज, सुरंग बनाने के भी खिलाफ थे। उनका कहना था कि इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह एवं गुणवत्ता प्रभावित होती है।

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