इस वजह से महंगी पड़ती है किसानों को कर्जमाफी की घोषणा, चुनाव आयोग से की रोकने की अपील
दिल्ली. किसानों का कर्जमाफ करने का वायदा इस समय राजनीति के सबसे सफल दांव के रूप में देखा जा रहा है. देश में सबसे पहले वीपी सिंह ने 1990 के चुनाव में किसानों के कर्जमाफ करने की घोषणा की थी. उसके बाद से चुनावी राजनीति को इसका रोग लग गया जो अब भी बदस्तूर जारी है. माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को मिली अभूतपूर्व सफलता के पीछे किसानों को कर्जमाफी देने की घोषणा ही थी. सम्भवतः उसी से ‘सीख’ लेते हुए दो दिन पूर्व राहुल गांधी ने भी छत्तीसगढ़ की चुनावी रैली में सरकार बनने के दस दिन के अंदर किसानों का पूरा कर्ज माफ करने की घोषणा कर दी. लेकिन इस तरह की घोषणाओं से देश की अर्थ व्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए एक बैंक कर्मचारी संगठन ने चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों को इस तरह की घोषणा करने से रोकने की मांग की है. इंडियन काउन्सिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनोमिक रिलेशन के एक शोध पत्र के मुताबिक़ वीपी सिंह के द्वारा कर्जमाफी की घोषणा करने के बाद बैंकों के द्वारा कर्जवसूली क्षमता में भारी कमी आई थी. अकेले कर्नाटक राज्य में ही बैंकों के द्वारा कर्ज वसूलने की क्षमता कुल कर्ज के 74.9 फीसदी से घटकर 41.1 फीसदी रह गई थी.
किसान और खेती
साल 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा 36,000 करोड़ का कर्ज माफ करने के बाद सरकार को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा और उसे कर्मचारियों को वेतन देने में भी परेशानी का सामना करना पड़ा. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि किसानों का कर्ज सरकार या बैंक के लिए उतनी बड़ी मुसीबत नहीं हैं जितना कि इसे बताया जा रहा है. इसका कारण यह है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने 31 दिसंबर 2017 को एक आंकड़ा जारी किया था जिसके मुताबिक बैंकों को एनपीए के रूप में होने वाले कुल नुकसान का 20.4 फीसदी हिस्सा उद्योगों के जरिये हुआ था. जबकि किसानों का हिस्सा महज 6.53 फीसदी ही था. इसलिए चंद उद्योगपतियों के जरिये होने वाले बड़े नुक्सान को करोड़ों किसानों के नुकसान को एक श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए.
बैंक कर्मचारी संगठन ने की रोकने की मांग
नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष अश्वनी राणा ने मंगलवार को चुनाव आयोग को एक पत्र लिखकर मांग की है कि वह राजनीतिक दलों को कर्जमाफी की घोषणायें करने से रोकने का निर्देश जारी करे. राणा ने कहा कि बैंकों की स्थिति बहुत खराब चल रही है. एनपीए से निबटने के लिए उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है. राजनीतिक दलों के द्वारा कर्जमाफी का वायदा करने के बाद वे लोग जो कर्ज की अदायगी करने में सक्षम होते हैं, वे भी कर्ज वापसी नहीं करते जिससे बैंकों का भार बढ़ता है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को इस तरह की घोषणाओं को करने से रोकना ही देशहित में होगा.