देहरादून, 03 जुलाई : उत्तराखण्ड में प्रकृति के कहर के साथ-साथ सरकारी व्यवस्थाएं भी चारधाम आने वाले यात्रियों को रुलाती है। चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले सरकार बेहतर व्यवस्थाएं होने का दावा करती है लेकिन ऐसे दावों की हकीकत यात्राकाल में यात्रियों के मौत से पता चलता है।
उत्तरकाशी जिले में स्थित युमुनोत्री धाम की यात्रा शुरू हुए अब तक 64 दिन हो गए और इस दौरान 22 तीर्थयात्रियों को सर्दी और ऑक्सीजन की कमी के चलते अलग-अलग मार्गों पर जान गंवानी पड़ी। इसके पीछे वजह हृदयगति का रुकना बताया जा रहा है।
बताते चले कि इस धाम की यात्रा सात किमी के पैदल मार्ग में पहाड़ पर सीधी चढ़ाई चढ़कर तय करनी पड़ती है। इनमें श्वास से पीड़ित यात्रियों के लिए विभिन्न जगहों में ऑक्सीजन की जरूरत भी होती है, लेकिन मार्ग में स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर प्रबंध नहीं किया, जबकि रास्ते में ऑक्सीजन उपलब्ध है के बोर्ड जरूर दिखते हैं। ऐसे में यात्रियों को इस धाम की यात्रा कर सकुशल घर लौटना चिंता का विषय बना रहता है।
उच्च हिमालय में स्थित बद्रीनाथ की समुद्रतल से ऊंचाई 10830, केदारनाथ की 11500, गंगोत्री की 11000 और यमुनोत्री की ऊंचाई 10797 फीट है। ऐसे में यहां तापमान में तेजी से परिवर्तन होता है। इन दिनों यहां दिन का तापमान औसतन 12 से 13 डिग्री सेल्सियस तो रात को शून्य से नीचे भी रिकॉर्ड किया जा रहा है।
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उत्तरकाशी के मुख्य चिकित्साधिकारी मेजर डॉ. बचन सिंह रावत बताते हैं कि दक्षिण भारत अथवा गरम प्रदेशों से आने वाले यात्रियों का शरीर यहां के मौसम का अभ्यस्त नहीं होता। एक तो ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और सर्द वातावरण में हाइपोथर्मिया (ठंड के कारण शरीर का तापमान बेहद कम हो जाना) का खतरा बना रहता है।
ऐसे में यहां की परिस्थितियां बजुर्गों के साथ ही हृदय रोगियों, दमा, ब्लड प्रेशर और शुगर के मरीजों के लिए ज्यादा संवेदनशील हैं। वह बताते हैं कि यात्रियों में जागरूकता की कमी है। यही वजह है कि यमुनोत्री के प्रमुख पड़ाव जानकीचट्टी में हर रोज महज 60 से 70 यात्री ही स्वास्थ्य कैंप में जांच के लिए आते हैं।