इराक में IS ने उड़ाया एतिहासिक नूरी मस्जिद को , जाने इसका इतिहास
बगदाद, 22 जून = अमेरिका के नेतृत्व वाली सेना से मोसुल में आईएस की चार दिनों से भयंकर लड़ाई चल रही है। चौथे दिन मोसुल के विख्यात मस्जिदों को तबाह कर दिया गया।
आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने मोसुल की प्रसिद्ध झुकी हुई मीनार और उससे जुड़ी मस्जिद को आज विस्फोट कर उड़ा दिया।
इस मस्जिद में आईएस नेता अबू बकर अल बगदादी 2014 में पहली बार लोगों के सामने पेश हुआ था और अपनी खिलाफत की घोषणा की थी।
इराकी सेना के एक शीर्ष कमांडर अब्दुलमीर याराल्लाह ने एक बयान में कहा, ‘हमारे जिहादी पुराने शहर में अंदर तक उनके ठिकानों की ओर बढ़ रही है और जब वे नूरी मस्जिद के 50 मीटर के दायरे में घुस गए तो आईएस ने नूरी मस्जिद और हदबा को उड़ा कर एक और ऐतिहासिक अपराध किया।’
एक लीडिंग वेबसाइट के अनुसार इस्लामिक स्टेट ने इस मस्जिद को गिराने के लिए अमरीकी नेतृत्व वाले सहयोगी गठबंधन सेना पर आरोप लगाया है. यह मस्जिद आईएस के जन्म का गवाह रही है. इस मस्जिद का नाम तुर्क शासक नूर अल-दिन महमूद ज़ांगी के नाम पर रखा गया था. नूर अल-दीन महमूद ज़ांगी मूसल और अलेपो शहर के शासक थे.
नूर अल दीन का इतिहास
28 साल के शासन में नूर अल-दीन ने दमिष्क पर कब्ज़ा कर लिया था और उन्होंने इसी के साथ ही सलादीन की (भविष्य में होने वाली) कामयाबी की बुनियाद रख दी थी.अयुबिद वंश की नींव डालने और 1187 में यरुशलम पर फिर से कब्ज़ा के पहले सलादीन मिस्र में नूर अल-दीन के कमांडर रहे थे.
नूर अल-दीन को जिहादी परम पूजनीय मानते हैं क्योंकि उन्होंने शियाओं के ऊपर सुन्नियों का वर्चस्व स्थापित किया था. इस मस्जिद के साथ भले एक शासक का नाम जुड़ा है लेकिन इसे लोग झुकी हुई मीनार के लिए जानते थे.कुछ स्तंभ, मेहराब और एक ताख़ा मक्का की दिशा की ओर संकेत करते थे.
बेलनाकार मीनार ईंट की बनी थी और इस पर जो कारीगरी थी वह ईरानी शैली से प्रेरित थी. इसके ऊपर एक छोटा सा गुंबद था जिस पर सफ़ेद प्लास्टर था.जिस वक़्त इसका निर्माण पूरा हुआ उस वक़्त मीनार की ऊंचाई 150 फुट थी. 14वीं शताब्दी में इब्न बतूता मूसल गए थे और मीनार में तब भी काफ़ी झुकाव था.
तब इस मीनार को ‘अल-हब्दा’ या कुबड़ा मीनार नाम मिल चुका था.
मीनार कैसे झुकी इसकी वजह आज तक पता नहीं है. स्थानीय परंपरा के मुताबिक पैगंबर मोहम्मद निधन के बाद जन्नत जा रहे थे तब मीनार उनके सम्मान में झुक गई थी.
हालांकि ऐसा मानने वाले इस तथ्य की उपेक्षा करते हैं कि इस मीनार के निर्माण से शताब्दियों पहले पैगंबर मोहम्मद का निधन हो गया था.
विशेषज्ञों का मानना है कि मीनार झुकने की वजह उत्तरी-पश्चिमी तेज़ हवा है. इसके साथ ही दक्षिण की ओर से सूर्य की रोशनी पड़ने के कारण ईंटें कमज़ोर हुईं या फिर ईंटों को जोड़ने के लिए जिस प्लास्टर का इस्तेमाल किया गया था वह मुलायम था.
ईरान-इराक़ युद्ध के दौरान भी मस्जिद को बम से नुक़सान पहुंचा था. मीनार के बेस के पास अंडरग्राउंड पाइप नष्ट हो गए थे. उसके आसपास सीवर के लिए खोदाई किए जाने के कारण भी इस मस्जिद की नींव कमज़ोर पड़ी थी.
2012 में यूनेस्को ने बताया था कि मीनार अपनी सीधी धुरी से 2.5 मीटर झुकी है. इसके साथ ही यूनेस्को ने इसके गिरने की संभावना की चेतावनी दी थी.दो जून 2014 को यूनेस्को ने स्थानीय सरकार की मदद से इस मीनार को लेकर एक संरक्षण कार्यक्रम चलाया था. हालांकि मूसल बाद में इस्लामिक स्टेट के कब्ज़े में आ गया और फिर इस कार्यक्रम को आगे नहीं बढ़ाया जा सका.