पटना, सनाउल हक़ चंचल-
आरा : वह 40 साल की महिला थी. जिस तरह गर्भवती महिला को इंजेक्शन लगा रही थी, उससे लगता था कि अस्पताल में ही कार्यरत है. उसने इंजेक्शन लगाया और गर्भवती महिला की हालत बिगड़नी शुरू हो गई. वह चिल्लानेे लगी. परिजनों ने जब पुछ-ताछ शुरू की तो पता चला कि यह महिला ना तो नर्स और ना डॉक्टर. इतना सुनना था कि परिजन भड़क गए. इसके बाद तो जो हुआ सबने देखा. लात-घूसों की बौछार शुरू हो गई.
देखते ही देखते आसपास जो लोग मरीज के साथ आए थे, वो भी दौड़कर वहां पहुंच गये. थोड़ी ही देर बाद माजरा सामने आ गया. पता चला कि यह महिला सदर अस्पताल में कार्य नहीं करती. वास्तव में यह दलाल है. उसकी पीटापाट इतनी हुई की उसे माफी मांगना पड़ा. मगर परिजनों का दिल नहीं पसीजा. घटना की जानकारी मिली तो सदर अस्पताल के डीएस डॉक्टर सतीश कुमार सिन्हा भी पहुंचे और उन्होंने अस्पताल प्रबंधन की गलती मान ली. ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने की भी बात उन्होंने कही.
अब यहां सवाल यह था कि सबसे बड़े आईएसओ से मान्यता प्राप्त अस्पताल में इस तरह का नजारा कैसे देखने को मिल रहा था. बिना डॉक्टरी परामर्श के गर्भवती महिला को सुई दे दी गयी. महिला कौन थी यह भी पता नहीं चल पा रहा था. अजीबोगरीब स्थिति बनी हुई थी. अस्पताल प्रबंधन के अधिकारी यह मान रहे थे, कि यह महिला अस्पताल की नहीं है. फिर भी यह ड्रामा चलता रहा. CS तो नहीं थे लेकिन डीएस जरूर पहुंचे और उन्होंने महिला के बारे में अभिज्ञता जाहिर की. यहां तक कि महिला उनके सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाती रही. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
यह ड्रामा 2 घंटे तक चलता रहा. बाद में डीएस ने तत्काल दर्द से छटपटा रही गर्भवती महिला का इलाज शुरू कराया. इसके बाद परिजन थोड़ा नरम हुए. मगर सवाल यह उठता है कि आखिर जब वह महिला अस्पताल में कार्यरत नहीं थी, तो आखिर कहां से ड्यूटी कर रही थी. किस हैसियत से उसने गर्भवती महिला को सुई लगायी. यह तो जवाब अस्पताल प्रबंधन के पास ही होगा.