आखिर क्या है तमिलनाडु का‘’जलीकट्टू’’ जिस पर तमिलनाडु से दिल्ली तक मचा है हंगामा.
केशव भूमि नेटवर्क :=तमिलनाडु में जलीकट्टू नामक फेस्टिबल की रोक को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है. बुधवार को सड़कों पर उतरी बेकाबू भीड़ ने इस खेल से प्रतिबंध हटाने की मांग की थी. गौरतलब है की साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों के साथ हिंसक बर्ताव को देखते हुए तमिलनाडु में जलीकट्टू त्योहार पर रोक लगा दी है। जब की केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में पोंगल त्योहार पर जल्लीकटू को हरी झंडी दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में अंतिरम आदेश जारी कर दिया है कि अब पोंगल त्योहार के दौरान यह खेल नहीं खेला जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस खेल पर प्रतिबंध लगाये जाने के बाद से आम लोग अपनी इस परम्परा पर हमले के रूप में देख रहे हैं. वही लोगो के विरोध और प्रदर्शन को देखते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने के लिए रवाना हो गये है . माना जा रहा है कि इस मुलाकात के दौरान पीएम मोदी से पनीरसेल्वम अध्यादेश की मांग कर सकते हैं.
पोंगल त्यौहार के मौके पर तमिलनाडु में जलीकट्टू नामक खेल का आयोजन किया जाता है.यह खेल मनुष्य और सांड़ के बिच में होता है .जलीकट्टू त्योहार से पहले गांव के लोग अपने-अपने बैलों को प्रैक्टिस करवाते हैं। जहां मिट्टी के ढेर पर बैल अपनी सींगो को रगड़ कर जलीकट्टू की तैयारी करता है। बैल को खूंटे से बांधकर उसे उकसाने की प्रैक्टिस करवाई जाती है ताकि उसे गुस्सा आए और वो अपनी सींगो से वार करे।
क्या है जलीकट्टू परम्परा ?
जलीकट्टू नामक खेल का मतलब , जली का अर्थ होता है ‘सिक्का ‘ और कट्टू का अर्थ है ‘बंधा हुआ’. इस खेल के दौरान सांड़ों के सींग में कपड़ा बंधा होता है. इस कपड़े में पुरस्कार राशि होती है. जल्लीकट्टू नामक यह खेल तमिलनाडु का करीब चार सौ साल पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। इसमें 300-400 किलो के सांड़ों की सींगों में सिक्के या नोट फंसाकर रखे जाते हैं, उसके बाद सांड़ों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डाला जाता है और उनकी पूंछों को मरोड़ा तक जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें। और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें। कथित तौर पर पराक्रम से जुड़े इस खेल में विजेताओं को नकद इनाम भी देने की परंपरा है।यह जानलेवा खेल का मेला तमिलनाडु के मदुरै में लगता है।
क्या हैं जलीकट्टू खेल के नियम?
इस खेल में कोई धांधली न हो इसके लिए लोगो ने इस खेल के लिए नियम भी बना रखे है जिसके तहत खेल के शुरु होते ही पहले एक-एक करके तीन बैलों को छोड़ा जाता है। ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। इन बैलों को कोई नहीं पकड़ता, ये बैल गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल। मुदरै में होने वाला ये खेल तीन दिन तक चलता है।
प्राचीन काल में महिलाएं वर को चुनने के लिए इस खेल का लेती थी सहारा .
वैसे तो तमिलनाडु में जलीकट्टू नामक यह परंपरा करीब 400 साल पुरानी है। जो योद्धाओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ करती थी। प्राचीन काल में महिलाएं जलीकट्टू खेल का सहारा अपने वर को चुनने के लिए भी किया करती थी। इस खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने वर के रूप में चुनती थी।
बुलफाइटिंग खेल से लोग करते है तुलना .
कई बार लोग जलीकट्टू के खेल की तुलना स्पेन की बुलफाइटिंग से करते है लेकिन यह खेल स्पेन के बुलफाइटिंग खेल से काफी अलग है जलीकट्टू नामक इस में बैलों को मारा नहीं जाता और ना ही बैल को काबू करने वाले युवक किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल करते हैं।