आखिर कौन है कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह….
नई दिल्ली ,25 जून : राजस्थान पुलिस के एनकाउंटर में मारे गए कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का जन्म राजस्थान के नागौर जिले के डीडवाना रोड पर बसा एक छोटा सा गांव सांवरदा में ठाकुर हुकुम सिंह के घर हुआ था । वैसे तो राजस्थान के नक्शे पर इस गांव की कोई खास पहचान नहीं है, लेकिन गुजरे दस सालों से अगर ये गांव किसी खास वजह से जाना जाता है तो वो है प्रदेश के सबसे बड़े गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की वजह से।
आनंदपाल सिंह को घर और गांव में सब पप्पू कहकर बुलाते थे। उसका बचपन गांव की गलियों में ही बीता। पढ़ाई में वह काफी होशियार था। इसी के चलते आगे की पढ़ाई के लिए वह 1988-89 में लाडनूं चला गया। वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उसने डीडवाना के बांगड़ कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से उसने स्नातक तक की पढ़ाई की। बाद में शिक्षक बनने के लिए उसने बैचलर ऑफ एज्यूकेशन की डिग्री भी प्राप्त की।
दबंगों की दबंगई ने आनंदपाल सिंह को गैंगस्टर आनंदपाल सिंह बनने पर किया मजबूर .
आनंदपाल सिंह को अपनी पढ़ाई के दौरान उस समय पहली बार सामाजिक असमानता का पता चला जब उसे नीचा दिखाया जाने लगा। इसकी टीस उसके मन में बैठ गई। इसी के चलते वह सामाजिक दूरियों को मिटाना चाहता था। लेकिन उसे ही इस असमानता का शिकार होना पड़ा। साल 1992 में आनंदपाल सिंह की शादी की बिन्दौरी को कुछ दबंगों ने रुकवा दी थी और पथराव भी किया। गांव के दबंग लोगों ने आनंदपाल सिंह के पिता को दूल्हे की घोड़ी पर बिन्दौरी नहीं निकालने की हिदायत दे डाली। उस समय छात्र नेता के रूप में जीवनराम गोदारा का दबदबा था और आनंदपाल सिंह ने पूरी बात दोस्त को बताई। जीवनराम और उसके साथी सांवरदा पहुंचे और आनंदपाल के साथ मिलकर असमानता का विरोध कर गांव में बिन्दौरी निकलवाई। मगर इस घटना ने आनंदपाल की जिंदगी की धारा ही बदल डाली और आनंदपाल सिंह बन गया सीधे साधे पप्पू से गैंगस्टर आनंदपाल सिंह।
राजनीति की तरफ था झुकाव ….
डीडवाना में स्नातक करने के बाद आनंदपाल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा था, लेकिन इसी दौरान उसका रुझान राजनीति की तरफ हुआ और साल 2000 में हुए पंचायत समिति के चुनाव में चुनाव जीता। लेकिन वह प्रधान के चुनाव में पूर्व केबिनेट मंत्री हरजीराम बुरडक के पुत्र जग्गनाथ से दो वोटों से हार गया। इसी साल पंचायत समिति के स्थायी समितियों के चुनाव में हरजीराम बुरडक से उसका विवाद हो गया और आनंदपाल का राजनीति में एक मुकाम हासिल करने का सपना चकनाचूर हो गया। इसी दौरान आंनदपाल सिंह पर राजकार्य में बाधा डालने का पंचायत समिति के विकास अधिकारी द्वारा एक मामला दर्ज हुआ। इसी दौरानआनदपाल सिंह से खेराज हत्याकांड हुआ और उसके बाद वह अपराध के दलदल में धसता गया। आनंदपाल ने अपने ख़ास दोस्त जीवन गोदारा से भी रिश्ते तोड़कर रास्ता अलग कर लिया। वह शराब की खरीद फरोख्त में घुसा और शराब माफिया बन बैठा। अवैध शराब की लूटपाट से ही आनंदपाल का अपराधिक सफर शुरु हुआ।
अपशब्द बोलने के शक के कारण दोस्त जीवनराम गोदारा चलाई गोली
साल 2006 में आनंदपाल सिंह ने डीडवाना में दिन दहाड़े जीवन गोदारा की दुकान में बैठे गोलियों से भूनकर हत्या कर दी और अपने गैंग के सदस्यों के साथ फरार हो गया। गोदारा हत्याकांड में आनदपाल के मंझले भाई मंजीतपाल सिंह का भी नाम सामने आया। जीवनराम पर हत्या से पहले भी जानलेवा हमला हुआ जिसका आरोप भी आनंदपाल पर ही लगा। इस मामले में आनंदपाल गिरफ्तार भी हुआ, लेकिन 4 महीने बाद ही उसे जमानत मिल गई। इसके बाद जीवनराम व उसके साथियों पर हवाई फायर करने का भी आनंद पर आरोप लगा। लगातार बढ़ती दुश्मनी में दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। सूत्र बताते हैं कि दुश्मनी में अपशब्द बोले जाने को लेकर आनन्दपाल सिंह खफा हो गया इसी के परिणाम स्वरूप 2006 में डीडवाना में जीवनराम गोदारा की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई।
गोदारा हत्याकांड के बाद बनाया बड़ा नेटवर्क
जीवन गोदारा हत्याकांड के बाद आंनदपाल सिंह प्रदेश में दहशत का दूसरा नाम बन गया। फरारी के दौरान 6 साल तक आंनदपाल ने पूरे प्रदेश मे कई वारदातों को अंजाम दिया लेकिन पुलिस उसे किसी भी मामले मे पकड़ नही पाई थी । इस हत्याकांड के बाद आनन्दपाल ने अपना एक बड़ा नेटवर्क बना लिया और यूपी, एमपी और बिहार के बदमाशों की मदद से आधुनिक हथियार जुटा लिए। शेखावाटी के बदमाश बलवीर बानुड़ा के साथ मिलकर नागौर से निकलकर शेखावाटी की तरफ रुख किया। शेखावाटी में राजू ठेठ गैंग के खिलाफ आनंदपाल सिंह के गैंग की कई बार मुठभेड़ हुई। आखिरकार आंनदपाल सिंह औऱ सहयोगी दातार सिंह को जयपुर पुलिस और एसओजी की संयुंक्त टीम ने हथियारों के जखीरे के साथ नवंबर 2012 मे फागी से गिरफ्तार कर लिया।
अजमेर जेल से 2015 में हो गया फरार…
फागी से गिरफतार होने बलवीर बानूडूा के साथ उसे बीकानेर जेल में भेजा गया था, लेकिन जेल में राजू ठेठ के गैंग की ओर से हुई फायरिंग में बलबीर बानूड़ा मारा गया और आनंदपाल बच गया। सुरक्षा कारणों के चलते आनंदपाल को अजमेर की सिक्योरिटी जेल में भेजा गया था। पेशी के दौरान कई बार आनंदपाल मुख्यधारा में आने की बात मीडिया के सामने कह चुका था और आईबी की रिपोर्ट में भी उसकी सुरक्षा को लेकर चिंताए जाहिर की जा चुकी थी। आंनदपाल सिंह कोर्ट में चल रही पेशियों पर रोजाना अजमेर जेल से लाया जाने लगा मगर पुलिस सुरक्षा धीरे धीरे कम होती गई। यह देख आंनदपाल ने फिर से फरार होने की साजिश रच डाली और 3 सितंबर, 2015 को फरार होने में कामयाब हो गया।
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