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अधूरे दस्तावेजों के चलते टली अयोध्या पर सुनवाई, अब मार्च में होगी

साक्ष्यों के रूप में दाखिल पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद दो हफ्ते में दाखिल करें :सुप्रीम कोर्ट 

नई दिल्ली, 08 फरवरी (हि.स.)। अयोध्या मसले पर आज अधूरे दस्तावेजों की वजह से सुनवाई टालनी पड़ी| चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने पक्षकारों को निर्देश दिया है कि वे साक्ष्यों के रूप में दाखिल पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद दो हफ्ते में दाखिल करें। मामले पर अगली सुनवाई 7 मार्च को होने की संभावना है।

सुनवाई की शुरूआत में ही चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इस मसले को एक भूमि विवाद के रूप में देखने की जरूरत है और किसी रूप में नहीं। कोर्ट ने कहा कि हम किसी भी हस्तक्षेप याचिका को न तो खारिज कर रहे हैं और न ही उन्हें निष्पादित कर रहे हैं। इन पर बाद में विचार किया जाएगा।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि मुख्य पक्षों के अलावा अब तक जिन लोगों ने अर्ज़ी दाखिल की है, उनकी सुनवाई होगी। केस शुरू होने के बाद किसी नई अर्ज़ी को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि 504 साक्ष्यों के साथ दस्तावेज पेश किए गए हैं। इनमें रामचरितमानस और गीता भी शामिल है। मामले के एक पक्षकार ने कहा कि सभी साक्ष्यों को अंग्रेजी में अनुवाद कर दाखिल किया जाना चाहिए जिसके बाद कोर्ट ने सभी साक्ष्यों को अंग्रेजी में अनुवाद कर दाखिल करने का निर्देश दिया|

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि कुल 10 बुक्स और दो वीडियो सुप्रीम कोर्ट में पेश किए जा चुके हैं। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि केवल पक्षकारों को ही दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाए क्योंकि दस्तावेज काफी ज्यादा हैं।

यूपी सरकार ने कहा सभी दस्तावेजों का अनुवाद पूरा हो गया है। एएसआई की रिपोर्ट,गवाहों के बयान से जुड़े दस्तावेज दाखिल कर दिए गए हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा हमने अपने हिस्से का काम पूरा कर लिया है लेकिन कई किताबें हिन्दू ग्रंथ से संबंधित हैं, उनके दस्तावेज बाकी हैं ।

मुस्लिम पक्षकार की ओर से ईज़ाज़ मकबूल ने उन दस्तावेजों का हवाला दिया, जो अब तक दाखिल नहीं हुए हैं | याचिकाकर्ता ने कहा कि केवल मुख्य पक्षकारों को ही सम्बंधित दस्तावेज जमा करने की इजाजत दी जाए।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि कुछ पुस्तकें हमारे लिए जरूरी हो सकती हैं दूसरों के लिए नहीं। कुछ पुस्तकें हमारे लिए जरूरी नहीं हो सकती हैं और दूसरों के लिए जरूरी हो सकती हैं। लेकिन इस पर फैसला कौन करेगा।

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