पटना, सनाउल हक़ चंचल
पटना । हर गांव तक बिजली पहुंच गई है। कुछ दिनों में कोई घर नहीं बचेगा। बिहार के सभी घर बिजली की रोशनी में चमकेंगे और यह चमक निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विकास कुमार वाली छवि को और उज्ज्वल करेगी। यानी बिजली नीतीश कुमार को सियासी ऊर्जा देगी।
पिछले कुछ महीनों में बिहार के राजनीतिक अखाड़े में कुछ अन्य मुद्दों पर दांव-पेंच चले जा रहे थे, लेकिन अब फिर यहां की राजनीति विकास की नाव पर सवार हो गई है।
शराबबंदी की सफलता के बाद अब बिजली के क्षेत्र में आई सफलता से नीतीश उत्साहित हैं। दरअसल, नीतीश कुमार इस लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद यह बताने में कामयाब हैं कि वह किसी भी गठबंधन में रहें, बात बिहार के विकास की करते हैं और काम करना भी जानते हैं।
नीतीश को याद है गांधी मैदान की घोषणा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 अगस्त 2012 को गांधी मैदान से एलान किया था कि बिजली की आपूर्ति में सुधार नहीं हुआ तो वह वोट मांगने नहीं जाएंगे। जाहिर है, उनका मकसद जाति-धर्म एवं आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति को पीछे छोड़कर विकास के एजेंडे को आगे करना था। वह इसमें सफल भी रहे हैं।
13 नवंबर 2017 को राजद प्रमुख लालू प्रसाद को चुनौती देते हुए नीतीश ने कहा था कि विकास के मुद्दे पर बहस के लिए वह तैयार हैं।
नीतीश ने यह बात तब कही थी, जब शराबबंदी के तकरीबन दो साल बाद राज्य सरकार ने गांधी जयंती के मौके पर दहेज प्रथा एवं बाल विवाह विरोधी अभियान शुरू किया था। पिछले 12 वर्षों में राज्य में बिजली के उत्पादन, संचरण और वितरण में हुई तरक्की से सरकार उत्साहित है।
700 से 4500 मेगावाट हुई आपूर्ति
नीतीश ने 2005 में जब भाजपा-जदयू गठबंधन में सत्ता संभाली थी तो बिहार में बिजली की आपूर्ति अधिकतम सात सौ मेगावाट थी, जो अब बढ़कर 4535 मेगावाट तक पहुंच गई है। नीतीश के पहले की सरकार में राजधानी में भी बिजली की गारंटी नहीं होती थी।
यह उम्मीद तो कतई नहीं थी कि कस्बों और गांवों तक बिजली पहुंचेगी। जब यह संभव हुआ तो आगे के चुनावों में बिजली अपने आप मुद्दा बनती चली गई। कुछ हद तक पिछले चुनाव में भी इसे उछाला गया था।