सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को लगाई फटकार ,रेप पीड़िता को तीन लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश
नई दिल्ली, 09 मई= सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि वो उस रेप पीड़िता को तीन लाख रुपये मुआवजा के रूप में दें। सुप्रीम कोर्ट ने उस महिला को गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दी। कोर्ट ने एम्स को निर्देश दिया कि पीड़िता के इलाज करा पूरा ग्राफिक बताएं। साथ ही बिहार सरकार को निर्देश दिया कि उसके इलाज के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए। सुप्रीम कोर्ट बिहार सरकार द्वारा लापरवाही की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के लिए 9 अगस्त को मुआवजे की रकम तय की जाएगी।
महिला रेप पीड़िता एचआईवी पॉजीटिव है। उसने अपने गर्भ में पल रहे 26 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति मांगी थी ।
27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला के 27 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अर्जी को नामंजूर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद कहा कि डॉक्टरों की राय के मुताबिक याचिकाकर्ता का स्वास्थ्य सामान्य है और कोई खतरा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी को एक महिला को उसके 23 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी थी। उस भ्रूण में डाउन सिंड्रोम की समस्या थी। महिला के भ्रूण के बारे में मेडिकल बोर्ड की राय थी कि भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को बचने की संभावना है। मेडिकल बोर्ड की इसी राय पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महिला को भ्रूण हटाने से मना कर दिया।
यह भी पढ़े : 10 दिनो तक देवभूमि पर मेहरबान रहेगा मौसम
उसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी को मुंबई की एक 22 वर्षीया महिला के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत दी थी। मुंबई के केईएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के बचने की उम्मीद कम है क्योंकि उसकी किडनियां नहीं थी। अस्पताल का रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने का आदेश दिया था।
16 जनवरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई की एक 22 वर्षीय महिला को उसके गर्भ में पल रहे असामान्य भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दी थी। उसका भ्रूण भी 24 हफ्ते का था। उक्त महिला की मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण की खोपड़ी विकसित नहीं हुई है और इसके जीवित बचने की उम्मीद बहुत कम है।
पिछले साल 25 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक रेप पीड़िता को 24 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दी थी। उस महिला की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि गर्भ में कई जन्मजात विसंगतियों की वजह से पीड़िता की जान खतरे में है। रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर गर्भ को गिराया नहीं गया तो महिला को शारीरिक और मानसिक रुप से नुकसान उठाना पड़ सकता है। बोर्ड ने सलाह दी थी कि पीड़िता का गर्भ 24 सप्ताह का होने के बावजूद उसका सुरक्षित तरीके से गर्भपात किया जा सकता है।