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मायावती ने भी एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग के खिलाफ जारी किए थे दो आदेश

नई दिल्ली (ईएमएस)। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की सुप्रीमो मायावती इस समय भले ही एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम की व्याख्या के खिलाफ दलित आंदोलन का समर्थन कर रही हों, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने भी अनुसूचित जाति-जनजाति निवारण अधिनयम-1989 के दुरुपयोग को रोकने को लेकर दो आदेश जारी किए थे।

तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा जारी ये आदेश इस बात पर केंद्रित थे कि एक्ट के तहत केवल शिकायत के आधार पर कार्रवाई नहीं की जाए, बल्कि प्राथमिक जांच में आरोपी के प्रथम दृष्ट्या दोषी पाए जाने पर ही गिरफ्तारी की जाए। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए इसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट का दुरुपयोग रोकने के लिए इस कानून की मूल भावना की व्याख्या करते हुए व्यवस्था दी। जिसे दलित संगठनों ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव बताते हुए इसके खिलाफ दो अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया।

बंद के दौरान व्यापक हिंसा हुई और 12 लोगों से अधिक लोगों की मौत हो गई। विपक्ष और दलित संगठन इस एक्ट को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए मोदी सरकार को घेर रहे हैं। बैकफुट पर नजर आ रही मोदी सरकार ने इसे लेकर रिव्यू पिटिशन दाखिल किया है, लेकिन सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया है। मायावती ने भी दलित संगठनों की मांग को अपना समर्थन दिया है। हालांकि यूपी की मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनकी सरकार खुद इस ऐक्ट के दुरुपयोग को लेकर चिंतित नजर आ रही थी।

20 मई 2007 को तत्कालीन मुख्य सचिव शंभु नाथ की तरफ से जारी किए गए पत्र के 18वें पॉइंट में इस एक्ट के तहत पुलिस से दर्ज की जाने वाली शिकायतों का जिक्र था। यह निर्देश मायावती के सीएम बनने के महज एक हफ्ते के भीतर ही जारी हुआ था। इस निर्देश में साफ किया गया था कि केवल हत्या और रेप जैसी जघन्य वारदात ही इस एक्ट के तहत दर्ज होनी चाहिए। अनुसूचित जाति-जनजाति के खिलाफ कम गंभीर अपराधओं के मामले आईपीसी की विभिन्न संगत धाराओं के अंदर दर्ज करने के निर्देश दिए गए थे।

एससी-एसटी एक्ट में रेप की शिकायतों पर तभी कार्रवाई का निर्देश था जब पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि हो जाए और प्रथम दृष्ट्या आरोपी दोषी पाया जाए। पत्र में साफ लिखा था कि पुलिस को केवल एससी-एसटी की शिकायतों के आधार पर ही कार्रवाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसे मामले देखे गए हैं, जब लोगों निजी बदला चुकाने के लिए इस एक्ट का दुरुपयोग किया।

साफ था कि माया सरकार में जारी इस दिशा-निर्देश का मकसद यह पक्का करना था कि इस अधिनियम का दुरुपयोग नहीं हो। मायावती की सरकार ने पुलिस को निर्देश जारी किए थे कि वह वास्तविक शिकायतों पर ही कार्रवाई करे। पहले दिशा-निर्देश के छह महीने बाद (29 अक्टूबर 2007) को तत्कालीन मुख्य सचिव प्रशांत कुमार ने डीजीपी और फील्ड के सभी वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए दूसरा पत्र भेजा। इस पत्र में मायावती सरकार ने एक्ट का दुरुपयोग होने पर आरोपी के खिलाफ समुचित कार्रवाई करने पर भी जोर किया था। पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश भी दिया गया था कि इस कानून के तहत दी गई सूचना फर्जी पाई जाती हैं, तो आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 182 के तहत कार्रवाई शुरू की जाए।

आईपीसी की धारा 182 किसी जनसेवक से उसके अधिकारों के इस्तेमाल कराकर दूसरे शख्स का नुकसान कराने के मकसद दी जानेवाली फर्जी सूचना से संबंधित है। इस मामले में डीजीपी ऑफिस को आदेश जारी किया गया था कि वह इस कानून के तहत दर्ज मामलों की लिस्ट बनाए और उस पर हुई प्रगति के बारे में समय समय पर राज्य सरकार को जानकारी दे। हालांकि इस संबंध में बीएसपी प्रवक्ताओं से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली।

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