बाबरी मस्जिद विवाद : जिस स्थान पर मस्जिद बनी, वह अल्लाह की, मुस्लिम पक्षकारों ने दी दलील
नई दिल्ली (ईएमएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुनवाई के दौरान कहा कि जरूरत पड़ी तो हम 1994 के संवैधानिक बेंच के फैसले को दोबारा विचार के लिए संवैधानिक बेंच को भेज सकते हैं। इस मसले पर सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी कि एक बार जहां मस्जिद बन जाती है, वह अल्लाह की संपत्ति हो जाती है। अगर उसे तोड़ भी दिया जाए, तो भी जमीन अल्लाह की ही रहती है।
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट इस पहलू पर फैसला लेगा कि क्या 1994 के सर्वोच्च न्यायालय से संवैधानिक बेंच के फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए इस मामले को संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाए या नहीं। सन 1994 के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है। मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि इस फैसले को दोबारा देखने की जरूरत है। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता की बात है और धार्मिक गतिविधियां इसी दायरे में हैं। इसके तहत नमाज पढ़ना, पूजा करना आदि मौलिक अधिकार के दायरे में है। सन 1994 में जो फैसला दिया गया है, वह अनुच्छेद 25 में दिए गए अधिकार को सीमित करता है।
धवन ने दलील दी कि हिंदुओं की मान्यता है कि अयोध्या में राम का जन्म हुआ था, वहीं, यह तथ्य भी है कि सन 1528 में मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई थी और तब से ही वहां नमाज पढ़ी जा रही है। सन 1992 में मस्जिद तोड़ दी गई। अब कहा जा रहा है कि मस्जिद जरूरी नहीं है। उसे राम की जन्मभूमि बताया जा रहा है। यह कैसे हो सकता है? ‘नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है’ जैसी तुलनात्मक बातें कैसे हो सकती हैं? उन्होंने कहा मस्जिद तोड़ देने से उसकी महत्ता कम नहीं हो जाती। मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने जब पूछा कि इस मसले पर आप (राजीव धवन) दलील पेश करने में कितना समय लेंगे, तो धवन ने कहा कि इस मामले में वह अब दो सप्ताह बहस करना चाहेंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में विचार किया जाए कि इसे संवैधानिक पीठ को रेफर किया जाए या नहीं, लेकिन हर स्थिति में मुख्य मामला जमीन विवाद से संबंधित ही है। इस मामले में अगली सुनवाई छह अप्रैल को होगी।