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पूर्वांचल को आखिर कब तक छलता रहेगा राजनीतिक समाज

पूर्वांचल का पूरी दुनिया में बड़ा नाम है। इसने देश को कई बड़े नेता दिए हैं। कई बड़े साहित्यकार और नौकरशाह दिए हैं। पूरी दुनिया के ज्ञान-विज्ञान का केंद्र रहा है पूर्वांचल। लेकिन विकास की कसौटी पर देखा जाए तो यह आज तक अपने को कहीं नहीं पा रहा। यह अलग बात है कि राजनीतिक दलों की नजर में पूर्वांचल कल भी अलमस्त फकीर था और आज भी उसकी स्थिति में कोई खास तब्दीली नहीं आई है। काशी में रहने वाले तो आज भी यही कहते हैं कि ‘चना चबेना गंग जल जो देवे दातार। काशी कबहुं न छांडिए विश्वनाथ दरबार।’ काशी पूर्वांचल का प्रतिनिधि शहर है। काशी के लोग संतोषी हैं तो इसका क्या मतलब हुआ कि उन्हें उसी हाल में छोड़ दिया जाए। वे एक लंगोटी और धोती में गुजारा कर लेते हैं तो क्या उन्हें दूसरी धोती पहनने का हक नहीं है। इसकी चिंता कौन करेगा। आजादी के बाद से आज तक वाराणसी को मिला क्या है। केवल वाचिक प्रलोभन। ऐसे कोरे वादे जो व्यवहार के धरातल पर खरे उतरे ही नहीं। यह तो वाराणसी की राम कहानी। वाराणसी जिले के गांवों के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। न ढंग की सड़कें हैं और न ही बिजली-पानी का प्रबंध। शिक्षा के नाम पर बनारस में तो रौनक है लेकिन वाराणसी के गांव और कस्बे आज भी अठारहवीं सदी का जीवन जीने को अभिशप्त हैं।

स्वास्थ्य को लेकर भी इस क्षेत्र में रोना-विलखना ही रहा है। कई जिलों का सबसे बड़ा चिकित्सालय बीएचयू में हैं लेकिन वहां रोगियों को एक टैब्लेट भी मुफ्त मिलती हो, ऐसा कभी देखने-सुनने में नहीं आया। शिव प्रसाद गुप्त अस्पताल की हालत भी राम भरोसे वाली ही है। गोरखपुर, बलिया, आजमगढ़, गाजीपुर, चंदौली, देवरिया, मऊ,सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर और जौनपुर में शिक्षा,स्वास्थ्य के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। बाढ़ और सूखा इन जिलों की नियति है। चुनाव के दौरान आजकल हर राजनीतिक दल पूर्वांचल पर मेहरबान है। स्वर्ग से तारा तोड़ लाने और पूर्वांचल के कदमों में रख देने के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस का शासन रहा है। चाहे उसका अपना मुख्यमंत्री रहा हो या अपना राज्यपाल। परोक्ष-अपरोक्ष रूप से पूर्वांचल पर कांग्रेस की ही हुकूमत रही है। जब मुलायम सिंह सत्ता में थे तब भी और जब मायावती सत्ता में थी तब भी केंद्र में कांग्रेस का ही शासन रहा। इन दलों की केंद्र में यूपीए सरकार को बचाने में भी सक्रिय भागीदारी रही लेकिन फिर भी पूर्वांचल की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ।

यह भी सच है कि पूर्वांचल के सहयोग से ही कांग्रेस, सपा और बसपा की सरकारें बनती रही लेकिन इसके बाद भी पूर्वांचल की राजनीतिक अनदेखी किसी के भी गले नहीं उतरती। सपा ने नारा दिया है कि उसका काम बोलता है। कांग्रेस से गठबंधन के बाद उसने नारा दिया है कि यूपी को ये साथ पसंद है और इसकी एक झलक आज कांग्रेस और सपा के युवराज समवेत रूप से वाराणसी में दिखाना चाहते थे फिर न जाने क्यों दोनों ही दल वाराणसी में अपने साथ का प्रदर्शन नहीं कर पाए। गोरखपुर में दोनों ने अपनी ताकत का इजहार जरूर किया। दोनों के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे। दोनों ने पूर्वांचल के विकास की बात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। अखिलेश यादव ने तो यहां तक कह दिया कि पांच साल में प्रधानमंत्री अपने काम का हिसाब क्यों देंगे। आज क्यों नहीं? बेहद वाजिब सवाल है। सत्तासीन व्यक्ति तो हर क्षण जवाबदेह होता है लेकिन यह सिद्धांत उन पर भी तो लागू होता है। उन्हें भी पूर्वांचल को यह बताना चाहिए कि उन्होंने उसके लिए आज तक क्या किया? पांच साल कम नहीं होते।

राजनीति में नौसिखिया होने का वास्ता देकर वे अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते। यही बात कांग्रेस पर भी लागू होती है कि आजादी के इतने सालों तक वह क्या करती रही। आजमगढ़ में कल-कारखानों के नाम पर ले-देकर एक चीनी मिल थी, वह भी कांग्रेस के दौर में ही बंद हो गई थी। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में उसे 2016 में पुनर्जीवन मिला। क्या चीनी मिल खोले जाने से आजमगढ़ का नुकसान हो गया। वहां के युवाओं के हाथ से काम छिन गया। अब जरा बिहार सीमा से सटे बलिया जिले की बात कर लेते हैं। यहां गंगा, घाघरा और टोंस जैसी पवित्र नदियां है। बागी बलिया चंद्रशेखर का कर्मक्षेत्र है यह। समाजवादियों का गढ़ रहा है यह क्षेत्र लेकिन बलिया में विकास के नाम पर किस तरह का समाजवाद विकसित हो रहा है। यह भी तो देखा जाना चाहिए। अपने इत्र, गुलाब सकरी व सिंहोरा के लिए विख्यात, बांगर और दोआब की सोंधी खुश्बू पर इतराने वाला यह जिला विकास के किस पायदान पर खड़ा है।

प्रदेश की मौजूदा सरकार को इसका भी जवाब देना चाहिए। रसड़ा स्थित चीनी मिल और काटन मिल कभी बलिया के विकास का इजहार करती थी लेकिन राजनीतिक उपेक्षा के चलतें दोनों ही उद्योग अब इतिहास बन गए हैं। समय के साथ- साथ यहां का किसान और नौजवान दोनों बेकारी के दलदल में फंस गया है। कांग्रेस ने कभी दावा किया था कि कांग्रेस का हाथ देश के साथ। वह हाथ कहां है। उसने बेरोजगार होते बलिया के लिए क्या किया? छोटे व्यवसाइयों की लाचारगी और बेबसी देखते ही बनती है। बाहुबल, जातिबल और धनबल की राजनीति ने इस कृषि प्रधान जनपद की आवश्यकताओं की कितनी अनदेखी की है, यह किसी से छिपा नहीं है। कोफ्त होती है जब राजनीतिक दल विकास की बात करने की बजाय अपने प्रतिद्वंद्वी को नीचा दिखाने की सामथ्र्य का प्रदर्शन करते हैं। सन् 2000 में काटन मिल और 2012 में यहां की चीनी मिल के बंद होने के बाद किसान मजदूर होने को विवश हो गए। रोजी-रोटी के लिए युवा दूसरे प्रदेशों में पलायन करने लगे। सात समंदर पार पहुंचने वाली इत्र की खुशबू यहां की गलियों व मजरों तक सिमट गयी। जिले की सात विधानसभा सीटों में सीयर, सिकन्दरपुर, बलिया नगर, बांसडीह व बैरिया मौजूदा समय में सपा के कब्जे में है जबकि फेफना से भाजपा और रसड़ा से बसपा के विधायक हैं। किसी भी दल या नेता के एजेंडे में बंद पड़े उद्योगों, युवाओं के पलायन और बेरोजगारी-गरीबी के मुद्दे शामिल नहीं है।

अखिलेश यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मां गंगा की कसम खाने को कह रहे हैं कि बनारस को चैबीस घंटे बिजली मिली की नहीं। उन्हें तो गंगा मां की कसम खुद खानी चाहिए और पूरे प्रदेश को यह बताना चाहिए कि शहर से लेकर गांव तक पांच साल हमने बराबर रौशन रखा। एक क्षण के लिए भी बिजली रानी को जनता की नजरों से दूर नहीं जाने दिया। मुख्यमंत्री को बिजली आपूर्ति के मामले में एक माह पूर्व के अपने बयान और चुनाव घोषणापत्र पर नजर फेर लेनी चाहिए। विरोधाभास उन्हे स्पष्ट नजर आ जाएगा। अब रही शिक्षा की बात तो उन्हें डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) से संबद्ध 200 कॉलेजों की कारस्तानी भी देख लेनी चाहिए। 19 हजार 834 छात्र-छात्राओं को दाखिले में गड़बड़ी पाए जाने पर निलंबित कर दिया गया है। विश्वविद्यालय ने यह कार्रवाई इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कोर्स में दाखिले को लेकर किए जाने वाले फर्जीवाड़े को रोकने के लिए की लेकिन संबंधित काॅलेजों के खिलापफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई, यह भी तो बताया जाना चाहिए। अखिलेश सरकार की नाक के नीचे निजी इंजीनियरिंग संस्थान ही नहीं बल्कि आइईटी लखनऊ, केएनआइटी, सुलतानपुर जैसे सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी खेल होते रहे। फोर लेन बनाने के नाम पर बैंकों व उनके अधिकारियों से मिलीभगत कर एक कंपनी ने चार अरब 55 करोड़ 46 लाख 77 हजार पांच सौ पांच रुपये का गबन कर लिया। इतनी बड़ी जालसाजी उत्तर प्रदेश राजमार्ग प्राधिकरण के सहयोग के बिना तो हुई नहीं।

यह अलग बात है कि प्राधिकरण के परियोजना महाप्रबंधक (दिल्ली सहारनपुर-यमुनोत्री मार्ग) शिवकुमार अवधिया ने मेसर्स एसईडब्ल्यू-एलएसवाई हाइवेज लिमिटेड कंपनी के प्रमोटर डायरेक्टर, डायरेक्टर तथा 14 विभिन्न बैंकों के अधिकारियों समेत 18 के खिलाफ जालसाजी की रिपोर्ट दर्ज करा दी है लेकिन ऐसा कर देने मात्र से प्राधिकरण अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त तो नहीं हो जाता। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का दावा किया था लेकिन इस राज्य में अपराध दर अपराध होते रहे। पुलिस की कार्यशैली पर अनवरत सवाल उठते रहे। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह अब इस बात का दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के विकास के बिना देश को शिखर पर ले जाना सम्भव नहीं है और भाजपा का संकल्प उत्तर प्रदेश को सिर्फ उत्तम प्रदेश नहीं बल्कि सर्वोत्तम प्रदेश बनाना है। उनका मानना है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी द्वारा चलाई गई मुहिम के तहत ही आज 6200 करोड़ रुपये की लागत से 8 अत्याधुनिक राजमार्गो का निर्माण हुआ है। अखिलेश सरकार जिस लखनऊ मेट्रो को अपने उपलब्धियों में गिना रही है उसमें 80 प्रतिशत योगदान केन्द्र सरकार का है। सरकार किसी की भी बने, यह उतना मायने नहीं रखता बल्कि मायने तो यह रखता कि विकास को लेकर कौन कितना गंभीर है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की सरकार में भी पूर्वांचल उपेक्षित रहा है। मौजूदा समय वादों का नहीं, वादों के क्रियान्वयन का है। आजादी से आज तक अगर पूर्वांचल का विकास नहीं हो सका है तो अब उसके विकास का रोडमैप क्या है, इसे पूर्वांचल को बताया जाना चाहिए। यहां कल-कारखाने लगे, निवेश का वातावरण बनें, ऐसे प्रयास होने चाहिए और ऐसा तभी संभव है जब पूर्वांचल का महत्व समझा जाए।

वैसे अपनी उपेक्षा से पूर्वांचल में नाराजगी है और इसका असर इस चुनाव में बहुत हद तक देखने को मिलेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। अलग राज्य की मुनादी करने वाले राजनीतिक दल महराजगंज और चंदौली जैसे जिलों में विकास की स्थिति का भी जायजा ले लें अगर ऐसा ही विकास होना है तो फिर राम बचाएं ऐसे विकास से। गढ़ बचाने की सियासत से बेहतर तो यह होगा कि विकास की बात हो। पहले पूर्वांचल का विकास हो जाए। सियासत तो बाद में भी होती रहेगी।(हि .स)

                                                                                       -सियाराम पांडेय ‘शांत’

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