पालघर लोकसभा सिट पर 28 मई को उपचुनाव की तारीख घोषित,राजनितिक गलियारों में सरगर्मिया बढ़ी .बीजेपी को भरी पड़ सकती है लोगो की नाराजगी
संजय सिंह ठाकुर ,26 अप्रैल : मुंबई से सटे पालघर जिला के पालघर लोकसभा सिट पर आज चुनाव आयोग ने 28 मई को उपचुनाव की तारीख घोषित कर दिया है .चुनाव की तारीख घोषित होते ही राजनितिक गलियारों में सरगर्मिया बढ़ गई .हालंकि पालघर लोकसभा सिट के साथ साथ महाराष्ट्र के भंडारा -गोंदिया ,पलूस कडेगांव लोकसभा सिट पर ,व अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश और बिहार,झारखंड ,नागालैंड ,केरल ,मेघालय ,पंजाब ,उत्तरखंड ,वेस्ट बंगाल के कई लोकसभा सीटो पर चुनाव की घोषणा हुई है .
बता दे की पालघर लोकसभा सिट से बीजेपी के टिकट पर चुनकर आये सांसद चिंतामण वनगा का 30 जनवरी को दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली में निधन हो गया था.जिसके बाद से यह सिट खली हुई थी.चुनाव को लेकर नेता इतनी जल्द बाजी में थे कि अभी चिंतामण वनगा के चिता की आग ठंडी भी नहीं हुयी थी की उसी दिन चिंतामण वनगा के परिवार की तरफ से उनके बड़े बेटे श्रीनिवास को उनका वारिस घोषित कर दिया गाया. इसे देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है की राजनिक पार्टिया इस उप चुनाव को लेकर कितनी जल्द बाजी में है.
कोर्ट ने उपचुनाव रोकने से किया माना
हालांकि की कानून पहले ही उपचुनाव की तारीख घोषित हो जानी चाहिये थे. लेकिन उपचुनाव रोकने के लिए गोंदिया के कुछ लोग नागपूर हाईकोर्ट में यह कहते हुए गए थे कि खाली हुई लोकसभा सीटो पर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में ही चुनाव हो ताकि उपचुनाव में होने वाले खर्च को बचाया जा सके . लेकिन नागपूर हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए इसे रिजेक्ट कर दिया .जिसके कारण उपचुनाव की तारीख थोड़ा देरी से घोषित हुई .
नामांकन की आखिरी तारीख 10 मई
सभी सीटों पर उपचुनाव में नामांकन की अंतिम तिथि 10 मई होगी और 14 मई तक नामांकन वापस लिए जा सकेंगे. उपचुनाव से जुड़ी सभी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर आज चुनाव कार्य्रकम की घोषणा किए जाने के साथ ही चुनाव आचार संहिता प्रभावी हो गई है.
राजनितिक गलियारों में सरगर्मिया हुई तेज .
चुनाव की तारीख घोषित होते ही चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवार अपने अपने काम छोड़कर अब अपनी अपनी पार्टी से टिकट पाने व चुनाव की तैयारी में जुट गए है .अब यह देखने वाली बात होगी कौन सी पार्टी किसे अपना उम्मीदवार घोषित करती है .
2008 के परिसीमन में उत्तर –मुंबई से अलग होकर पालघर बना नया लोकसभा सिट
देखा जाय तो 2008 के परिसीमन में उत्तर –मुंबई से अलग होकर बने पालघर लोकसभा सिट पर 2009 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में बविआ के बलराम जाधव ने बीजेपी के चिंतामण वनगा को हराकर इस सिट पर कब्ज़ा कर लिया था .इस चुनाव में बलराम जाधव को 223234 वोट और चिंतामण वनगा को 210874 वोट मिले थे .लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में चल रहे मोदी लहर के कारण यह चित्र बदल गया . चुनाव में बीजेपी चिंतामण वनगा बविआ के बलराम जाधव को 239,520 वोट से हराकर इस सिट पर जित हासिल कर लिया .देखा जाय तो मोदी लहर में भी बविआ के बलराम जाधव का जनाधार बढ़ा है जो बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनवती है .
इस चुनाव में बीजेपी को 533201 और बविआ के जाधव को 293681 वोट मिले थे .उस समय मतदाताओ की संख्या करीब 15 लाख 78 हजार थी. लेकिन होने वाले इस उप चुनाव में करीब 1.5 लाख बढे नए मतदाताओ के कारण अब यह संख्या 17 लाख 24 हजार तक पहुंच गई है .इस उप चुनाव में बढ़े हुए मतदाताओ के निर्णय काफी महत्वपूर्ण होंगे.
किसानो की नाराजगी बीजेपी को पड़ सकती है मंहगी .
केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार आने के बाद पेशा कानून के अंतर्गत आने वाला पालघर जिला की जनता को बीजेपी सरकार से काफी उम्मीदे थे की यह सरकार पालघर जिले में विकास करेगी बेरोजगार युवाओ को रोजगार मिलेगा. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे लोगो के सपनो पर पानी फिर गया और लोगो का बीजेपी सरकार के प्रति नाराजगी बढती गई .
पालघर जिला में चल रहे बुलट ट्रेन ,रेलवे कैरिडोर ,बडौदा –मुंबई एक्सप्रेसवे ,जैसे अन्य प्रोजेक्ट के लिए सरकार द्वारा किसानो की जमीन ली जा रही है .साथ ही सूर्या प्रकल्प से किसानो का पानी विरार –वसई शहर व मिरारोड़ –भाईंदर महानगर पालिका को दिया गया है . जिसका विरोध करते हुए नाराज आदिवासी किसान व अन्य किसानो ने कई बार पालघर कलेक्टर ऑफिस पर मोर्चा निकाल कर अपना रोष प्रगट कर चुके है .
उनका कहना है की सरकार हमें बिना उचित मुवाबजा दिए जबरदस्ती हमारे जमीन को हड़प कर रही हैं . सरकार अपने फायदे के लिए इस प्रोजेक्ट को लगने वाली जमीन को पेशा कानून से अलग कर दिया है जब की पेशा कानून के तहत कोई भी जमीन लेने से पहले ग्राम सभा की मंजूरी जरुरी होती है .मिरारोड़ –भाईंदर महानगर पालिका में हुए चुनाव में देवेन्द्र फड़नवीस ने अपना बचन पूरा करने के लिए सूर्या प्रकल्प से 182.83 दलघमी हमारे पानी को इन महानगर पालिकाओ को दे दिया .
बीजेपी सरकार के प्रति लोगो की चल रही नाराजगी को देखते हुए इस उप चुनाव की राह बीजेपी के लिए आसान नहीं दिखाई दे रही है .इस नाराजगी का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है जिसे विरोधी पक्ष के नेता चुनावी मुद्दा बना कर उप चुनाव में बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ा कर सकते .
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