नरेश अग्रवाल के आने से बीजेपी में बढ़ेगा क्लेश , राजनाथ सिंह से नहीं बैठती है पटरी
लखनऊ (ईएमएस)। नरेश अग्रवाल के सपा छोड़ भाजपा का दामन थामने के बाद पार्टी में क्लेश बढ़ना तय माना जा रहा है। भाजपा में नरेश के जितने चाहने वाले हैं, उससे कहीं ज्यादा उन्हें नापसंद करने वाले हैं। नरेश अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने न केवल हिंदू धर्म पर टिप्पणी की, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया। वह बीजेपी में शामिल हुए तो जया बच्चन पर टिप्पणी की। इसका विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने न केवल विरोध किया, बल्कि उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि यह टिप्पणी अनुचित और अस्वीकार्य है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह नरेश को तब से पसंद नहीं करते, जब वह 2001 में उनकी सरकार में ऊर्जा मंत्री थे।
राजनाथ ने उनकी कार्यशैली से तंग आकर उन्हें 2001 में मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। नरेश ने तब लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई थी और वह राजनाथ सरकार को समर्थन दे रहे थे। जब उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तब राजनाथ को उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा। नरेश ने 19 विधायकों का समर्थन वापस लेने की धमकी दी, पर उसी वक्त नरेश के साथ के 13 विधायकों ने राज्यपाल को यह लिखकर दे दिया कि वे राजनाथ सिंह के साथ हैं। तब से उनके और राजनाथ के रिश्ते सामान्य नहीं हैं। वहीं, बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवार अशोक वाजपेयी और नरेश अग्रवाल के बीच हरदोई की सियासत में छत्तीस का आंकड़ा काफी पुराना है।
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सपा के भीतर भले अशोक वाजपेयी मुलायम के करीबी और वरिष्ठ नेता माने जाते रहे थे, लेकिन सपा सरकार में नरेश ने हरदोई को अपने मनमुताबिक ही चलाया। पिछली सरकार में हरदोई में जो भी अफसर पोस्ट हुआ, वह नरेश के हिसाब से ही गया। पूर्व शिक्षा मंत्री अशोक वाजपेयी और नरेश अग्रवाल के बीच छत्तीस का आंकड़ा समाजवादी परिवार के झगड़े के दौर में तब भी सामने आया, जब नरेश के कहने पर अशोक को अखिलेश यादव ने तवज्जो नहीं दी। इसी वजह से अशोक एमएलसी का पद त्यागकर बीजेपी में शामिल हो गए। अब तो नरेश भी उनके साथ बीजेपी में आ गए। तब दोनों में घमासान होना तय है।
नरेश अपने चार दशक के राजनीतिक करियर में दलबदलू के तौर पर पहचाने जाते हैं। 1980 में उन्होंने कांग्रेस से अपना करियर शुरू किया था और सात बार विधायक रहे। 1997 में जब कल्याण सिंह सरकार विश्वास मत साबित करने के लिए जूझ रही थी, तब नरेश ने बीजेपी का साथ दिया। उन्होंने तब लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई। इसके बाद वह कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। 2003 में जब मायावती को सत्ता से हटाकर मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने, तो नरेश सपा में शामिल होकर पर्यटन मंत्री बन गए।