नई दिल्ली (ईएमएस)। सर्वोच्च न्यायालय के एससी-एसटी ऐक्ट पर फैसले और फिर दलित संगठनों के भारत बंद के चलते शुरू हुई राजनीति के बाद अब संघ और भाजपा ने डैमेज कंट्रोल की तैयारी कर ली है। संघ ने अपने आनुषांगिक संगठनों को इसके लिए निर्देश दिए हैं। इसके बाद विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने 14 अप्रैल को देश भर में बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती मनाने की योजना बनाई है।
इस आयोजन के जरिए संघ की कोशिश दलित समाज के करीब जाने की है। विपक्षी दलों के हमलों का भाजपा की टॉप लीडरशिप ने यह कहते हुए जवाब दिया है कि हम कोटा को बनाए रखने और दलितों एवं आदिवासियों की रक्षा के लिए बने कानून को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विहिप और बजरंग दल की यूनिट ने आंबेडकर जयंती पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों की कड़ी में रविवार को बाइक रैली का आयोजन किया था।
विहिप के एक नेता ने कहा कि इसके जरिए हमारा प्रयास जातिवादी विभाजन के खिलाफ हिंदुओं की एकता स्थापित करना है।
विहिप के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा ऐसे तत्व हैं, जो हिंदू समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन, हम ऐसे तत्वों को काउंटर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके अलावा भाजपा ने भी उत्तर प्रदेश में आंबेडकर जयंती के लिए नया नारा दिया है, ‘बाबा जी का मिशन अधूरा, भाजपा कर रही है पूरा’। राज्य सरकार ने साथ ही 13 अप्रैल की ‘आंबेडकर मिशन पदयात्रा’ को भी अपनी योजना में शामिल किया है। भाजपा कार्यकर्ता राज्य के हर जिले में दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों से आंबेडकर जयंती के एक दिन पहले होनेवाली इस पदयात्रा में शामिल होने की अपील करेंगे।
मोहनलालगंज से भाजपा सांसद और यूपी भाजपा एससी/एसटी मंच प्रमुख कौशल किशोर ने बताया कि पदयात्रा आंबेडकर की प्रतिमा के पास खत्म होगी। कौशल ने कहा हम बताएंगे कि हम ही हैं जो भीम राव आंबेडकर, राम मनोहर लोहिया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मिशन को पूरा कर रहे हैं। पार्टी इसके जरिए पिछड़ों को अपनी तरफ खींचने के लिए बीएसपी, एसपी और भाजपा की विचारधारा के प्रणेताओं को एक ही मंच पर पेश करने की कोशिश कर रही है। विहिप के मिलिंद परांडे ने कहा कि बाबासाहेब ने जातिवादी श्रेष्ठता और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था।
विहिप नेता ने कहा हम बताना चाहते हैं कि कैसे आंबेडकर ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने और अग्रिम जमानत को मंजूरी देने के फैसले के बाद मोदी सरकार बैकफुट पर दिख रही है। केंद्र सरकार पर दलित समाज को अपने भरोसे में लेने का दबाव है।