दलहनी फसलों में मूंग की खेती भी फायदेमंद
लखनऊ,30 अक्टूबर(हि.स.)। दलहनी फसलों में मूंग की खेती भी बहुत उपयोगी होती है। इसमें प्रोटीन अधिक मात्रा में पायी जाती है। मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चहिये। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो चलाकर करनी चाहिए। मूंग की खेती खरीफ एवं जायद दोनों मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है।
मूंग के दानों में 25 प्रतिशत प्रोटिन, 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 13 प्रतिशत वसा तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता हैं। इसमे वसा की मात्रा कम होती है और यह विटामीन बी कॉम्प्लेक्स, कॅलशियम, खाद्य रेशांक और पोटेशियम भरपूर होता है।
दलहन फसल होने के कारण मूंग को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है। नाइट्रोजन एवं फास्पोरस की मात्रा 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया के द्वारा बुवाई के समय देनी चाहिए। मूंग की खेती हेतु खेत में दो तीन वर्षों में कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए।
मूंग की दाल से दही-बड़े, हलवा, लड्डू, खिचड़ी, नमकीन, कचोड़ी, पकोड़े, चीला, समोसे, सलाद, चाट या सब्ज़ी, खीर, सूप, सेण्डविच और स्टर फ्राय, पॅनकेक, दोसा, उत्तपम्, वैतनामीस स्प्रिंग रोल मूंग-उड़द वडा आदि बनाए जाते हैं। बीमार होने पर डॉक्टर मूंग की खिचड़ी या मूंग की दाल खाने का ही परामर्श देता है। क्योंकि यह जल्दी पच जाती है।
मूंग में प्रायः पीला चित्रवर्ण मोजेक रोग लगता है रोग के विषाणु सफ़ेद मक्खी द्वारा फैलते है। इसकी रोकथाम के लिए समय से बुवाई करना अति आवश्यक है दूसरा मोजेक अवरोधी प्रजातियाँ का प्रयोग बुवाई में करना चाहिए। तीसरा मोजेक वाले पौधे को सावधानी से उखाड़ कर नष्ट देना चाहिए।