जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आए
नई दिल्ली, 18 नवंबर : आज से ठीक 54 वर्ष पूर्व 13-कुमाऊं रेजिमेंट की अहीर चार्ली कम्पनी मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 18 हजार फिट की ऊंचाई पर चुशूल हवाई अड्डे की सुरक्षा के लिए तैनात थी। 18 नवंबर 1962 की काली रात में चीन के करीब 3000 से ज्यादा सैनिकों ने अचानक रजांगला की पहाड़ी पर हमला कर दिया। पहाड़ी पर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में तैनात अहीर चार्ली कम्पनी के 123 वीर जवानों ने चीन के सैनिकों को तब तक पास आने दिया जब तक कि वे उनके बंदूक के रडार में नहीं आ गए। जैसे ही चीनी सैनिक करीब आए शैतान सिंह के नेतृत्व में सैनिक एक भूखे शेर की तरह उन पर झपट पड़े। कुछ ही देर चली इस लड़ाई में अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सैनिकों ने 1310 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया। रजांगला की पहाड़ी चीनी सैनिकों के खून से लाल हो गई थी। इस भीषण आक्रमण से बौखलाई चीनी सेना ने अपनी सैन्य ताकत को और बढ़ाकर थोड़ी देर बाद तीन दिशाओं से आक्रमण किया। इस आक्रमण का मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 123 वीर जवानों ने अदम्य साहस के साथ मुकाबला किया। इस लड़ाई में मेजर सिंह और अहीर चार्ली कम्पनी के 123 में से 113 वीर जवानों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
11 फरवरी 1963 को रेडक्रॉस और सेना के अधिकारियों का दल रजांगला की पहाड़ी पर पहुंचा तो उन्होंने युद्धस्थल को सुरक्षित पाया। दल के अधिकारी ये देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि शहीद जवानों के शरीर हथियारों के साथ मोर्चों में तैनाती की अवस्था में थे। इसके बाद शहीद मेजर शैतान सिंह के पार्थिव शरीर को विशेष विमान से उनके जन्मभूमि जोधपुर (जोधाणा) ले जाया गया। जहां पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। अन्य 113 शहीद जवानों का अंतिम संस्कार चुशूल की पहाड़ियों के पास किया गया। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में अहीर चार्ली कम्पनी के जवानों ने चीनियों से हार नहीं मानी। गोला, बारूद के अभाव के बावजूद वीर जांबाजों ने सैकड़ों चीनी जवानों को मार गिराया। इस वीरता के लिए मरणोपरांत मेजर सिंह को परमवीर चक्र से नवाजा गया। मेजर सिंह का जन्म एक दिसंबर 1924 को हुआ था। (हि.स.)।