बेंगलुरु (ईएमएस)। पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस नेता एचडी देवेगौड़ा काफी उत्साहित हैं। वह सुबह पांच बजे से अपनी चुनावी दिनचर्या शुरु कर देते हैं। उनके उत्साह की वजह भी है। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद उबला दलित विरोध और मायावती का साथ उन्हें काफी खुश कर रहा है। इसने बिखरते दलित वोटरों को एक कर दिया है और उन्हें बीजेपी से नाराज भी कर दिया है। देवेगौड़ा के लिए कर्नाटक का यह विधानसभा चुनाव ‘करो या मरो’ वाला है। उन्हें उम्मीद है कि वह 1994 के अपने प्रदर्शन को दोहरा पाएंगे। 1994 में उन्होंने 224 में से 113 सीटें जीती थीं। कर्नाटक में मुकाबला कांग्रेस, बीजेपी और देवेगौड़ा के गठबंधन के बीच ही है। हैदराबाद में जड़ें जमा चुकी ओवैसी की एआईएमआईएम भी इस साल चुनाव में हाथ आजमाना चाहती है। पार्टी की नजर कर्नाटक के मुस्लिम बहुल इलाकों पर है।
ओवैसी और देवगौड़ा के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत शुरु हुई थी। लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ा है। देवेगौड़ा के पारंपरिक वोटरों में मुसलमान वोटर भी शामिल हैं। वोक्कालिगा और पिछड़े वोट बैंक पर भी जेडीएस का प्रभाव है, जबकि दलितों पर मायावती का। बीएसपी ने पहले भी राज्य के चुनाव में उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि उन्हें किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। लेकिन कुछ क्षेत्रों में 30 हजार तक वोट बीएसपी ने हासिल किए थे। ऐसे में वे सीटें, जहां मामला कुछ हजार वोटों से अटकता है, बीएसपी का साथ देवेगौड़ा की मदद कर सकता है। हालांकि मायावती ने अपने पत्ते अभी खोले नहीं हैं। कर्नाटक की राजनीति में तीन जातीयों का प्रभाव है, लिंगायत, वोक्कालिग्गा और कुरबा समुदाय। राज्य की मौजूदा राजनीति इन तीनों समुदायों से आने वाले नेताओं पर ही टिकी है। कांग्रेस नेता सिद्धारमैया कुरबा समुदाय से आते हैं।
बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा लिंगायत हैं. जबकि देवेगौड़ा वोक्कालिग्गा। लिंगायतों की कई सालों से अपने लिए अलग धर्म के दर्जे की मांग रही थी, जिसे सिद्धारमैया सरकार ने मानकर प्रस्ताव को केंद्र के पास भेज दिया है। हालांकि बीजेपी साफ कर चुकी है कि वह लिंगायत को अलग धर्म मानने के लिए राजी नहीं है। इसके बाद लिंगायत के 220 मठों के मठाधीशों ने बैठक बुलाकर चुनावों में कांग्रेस को समर्थन देने का एलान कर दिया। इस तरह लिंगायत और कुरबा कांग्रेस के साथ माने जा सकते हैं। लेकिन वोक्कालिग्गा समुदाय में देवगौड़ा लोकप्रिय हैं। राज्य में इस समुदाय की जनसंख्या 12 फीसदी है। वोक्कालिगा लिंगायत वाले मुद्दे पर सिद्धारमैया से नाराज हैं, जिसका सीधा लाभ जेडीएस को होगा। राज्य में दलित समुदाय 60 विधानसभा सीटों के नतीजे तय करता है। ऐसे में अगर मायावती जेडीएस के साथ यदि वास्तव में जाती हैं तो चुनाव परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं।