संजय सिंह ठाकुर :=पालघर जिला के जव्हार ,मोखाडा ,विक्रमगढ़ ,वादा ,तलासरी ,दहाणु व अन्य भागो में छोटे छोटे बच्चो को निगलने वाले कुपोषण नामक राक्षस का कब संहार होगा, अब यह सवाल पालघर के हर गली मोहल्ले में उठाये जा रहे है .लेकिन इसका जबाब किसी के पास नहीं है .
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से महज 100 किलो मीटर की दुरी पर बसा पालघर जिला यह एक आदिवासी बाहुल्य जिला है . जिले के जव्हार ,मोखाडा ,विक्रमगढ़ ,वाडा ,तलासरी ,दहाणु व अन्य तहसीलों में बड़ी संख्या में आदिवासी
समाज रहता है . इन आदिवासी समाज की तरक्की के लिए पालघर को ठाणे जिला से अलग करके 2014 में नया जिला बनाया गया है . लेकिन नया जिला बनने के बाद भी अभी तक इनका कुछ फायदा नहीं हुआ है. ज्यादा तर लोगो के पास खेती करने के लिए जमींन नहीं हैं, न ही उनके पास कोई रोजगार हैं , जिसके कारण ज्यादा तर लोग भूखमरी के शिकार है . और उनके बच्चे और परिवार कुपोषण का शिकार हो रहे है .इन्हें अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए काम की तलास में आस पास के जिलो में भटकना पड़ता है . जिसके कारण यह लोग खाना बदोस की जिंदगी जीने के लिए मजबूर है. बारिस के चार महीने तो इनके लिए मुसीबत का पहाड़ बनकर आते है .
देश को आजाद हुए करीब 69 साल हो गये लेकिन इतने साल के बाद भी इन गांवो में अभी तक बिजली , पानी और रसोई गैस जैसे सुबिधाए इन लोगो तक नहीं पहुच पायी है . और यह सुबिधाए किस चिड़िया का नाम है यह इन गाँव वालो को नहीं मालुम .
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