कमजोर निर्देशन की शिकार है फिल्म ‘डियर माया’
मुंबई, 02 जून = मनीषा कोइराला ने 90 के दशक में हीरोइन के तौर पर हिन्दी फिल्मों के दर्शकों के दिलों पर राज किया है। लम्बे गैप के बाद वे अब ‘डियर माया’ से पर्दे पर लौटी हैं। ये वापसी बहुत सुखद नहीं है, लेकिन पूरी तरह से निराश करने वाली भी नहीं है।
जब वी मेट सहित तमाम फिल्में बनाने वाले निर्देशक इम्तियाज अली की सहायक रही सुनयना भटनागर निर्देशित फिल्म ‘डियर माया’ एक महिला माया (मनीषा कोइराला) के जीवन के सफर की कहानी है, जो शिमला में रहती है। माया की गंभीर जिंदगी से उनके पड़ोस में रहने वाली दो बच्चियों एना (मदीहा इमाम) और उसकी सहेली इरा (श्रेया चौधरी) प्रभावित होती हैं और माया की जिंदगी को बदलने के लिए रास्ते तलाश करती हैं। उन दोनों को लगता है कि माया को अगर कोई लव लेटर लिखे, तो माया को इससे खुशी मिलेंगी। दोनों का ये लव लेटर लिखने का आइइिया माया की जिंदगी को कितना प्रभावित करता है, फिल्म इसी सवाल के जवाब में आगे बढ़ती है।
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सुनयना भटनागर का ये आइडिया दिलचस्प था। पहले हाफ में फिल्म की दिलचस्पी बरकरार रहती है, लेकिन दूसरे हाफ में फिल्म बिखरती चली जाती है, जिसका सबसे पहला कारण सुनयना का कमजोर निर्देशन रहा है, जिनकी बतौर डायरेक्टर ये पहली फिल्म है। वे मनीषा कोइराला के किरदार को वो टच नहीं दे पाईं, जिसकी जरूरत थी। माया का किरदार जहां-जहां कमजोर होता है, वहां-वहां फिल्म भी कमजोर होती चली जाती है। मनीषा कोइराला ने वापसी के लिए अच्छी फिल्म चुनी, लेकिन तमाम कारणों से फिल्म दर्शकों के दिलों को छूने में असफल रहती है। मनीषा कोइराला की परफॉरमेंस बुरी नहीं, कमजोर है और ये कमजोरी उनके किरदार माया की है। दोनों टीनेजर के रोल में मदीहा इमाम और श्रेया चौधरी का चुलबुलापन अपील करता है और मनोरंजन के पल लेकर आता है।
‘डियर माया’ एक गंभीर फिल्म है, जो महिला प्रधान है। ऐसी फिल्मों में गंभीर कहानी, उम्दा कलाकारों के साथ एक सक्षम निर्देशक की सख्त जरूरत थी, जिसकी कमी अखरती है। गंभीर खामियों के चलते माया का सफर मनीषा कोइराला की वापसी को सफलता से दूर रखेगा। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म से ज्यादा उम्मीद नहीं हो सकती।